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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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तेरी दो आँखें - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ७


संयम स्वर्ण महोत्सव

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haiku (7).jpg

 

तेरी दो आँखें,

तेरी ओर हज़ार,

सतर्क हो जा |

 

भावार्थ - लौकिक शिक्षा के साथ पारलौकिक सुख की प्राप्ति का उपाय बताते हुए आचार्य महाराज कह रहे हैं कि हे प्राणी ! जगत् की परीक्षा अथवा समीक्षा या आलोचना करने के लिए तेरे पास केवल दो आँखें हैं लेकिन तेरी परीक्षा या समीक्षा या आलोचना की दृष्टि से जगत् में हजारों आँखें तेरी ओर देख रही हैं इसलिए सर्वजन हिताय की भावना से और कर्मबंध से बचने के लिए कायिक और वाचनिक क्रियाओं में सावधानी रखते हुए मानसिक विचारों से भी बचें। 

आर्यिका अकंपमति जी 

 

हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।

 

आओ करे हायकू स्वाध्याय

  • आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं।
  • आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं।
  • आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं।

लिखिए हमे आपके विचार

  • क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं।
  • इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?

8 Comments


Recommended Comments

2 hours ago, Sneh Jain said:

bahut sundar. kitne kam shabdo me sabko  achhe aachran ke liye savdhaan kar diya . dhany hai ham guruvar ko paa kar.

 

तू सबसे अलग होकर अपने में रम

यहीसन्देश है गुरुवर का

नमोस्तु गुरुदेव

नीलम जैन

2 hours ago, Sneh Jain said:

bahut sundar. kitne kam shabdo me sabko  achhe aachran ke liye savdhaan kar diya . dhany hai ham guruvar ko paa kar.

 

 

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इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमे ये समझाना चाहते है की हमे कोई सा भी कार्य बहुत अच्छी तरह से सोच समझ कर के करना चाहिए  क्योंकि हमारी तो दो आंखें है और हमको हजारों आंखें देखती है। हमें हर कार्य सतर्क होकर के करने चाहिए ।

Edited by Sakshi Soni Jain
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हे गुरूदेव नमोस्तु । इस छंद में कहने का आशय है कि मेरे पास तो सिर्फ दोही आँखें है (व्यवहार निश्चय)तू अपने अंतरग में रमजा क्योंकि हजारों कर्म रूपी आँखो की दृष्टि तेरे पर है इसलिये हे चेतन। सावधान होकर अपने में रम जा

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जोजजआचार्य शी नमोस्तु 

हमतो अपना काम सहज भाव मे करते रहते है परंतु हमेशा हमे देखने वाले हजारों लोग हैं जो हर पल निगाह रखते हैंउनसे संभल और तेरी अंतरा्तमा भी हर शण देखतीहै

 

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Gurudev ke pavan shri charno me koti koti vandana

 

तेरी दो आंखे अथार्त जीव में दो ज्ञान सामान्यतः होते हैं मति और श्रुत ज्ञान।कर्म करते समय जीव इन्ही दो ज्ञान का सहारा लेता है। वैसे ज्ञान के चार प्रकार हैं मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधि ज्ञान, मनपर्याय ज्ञान।सर्व अवधि ज्ञान ही केवल ज्ञान है जो केवली भगवान के ज्ञान चक्षु को कई हज़ार गुना बना देता है हमारे द्वारा किये भाव , और कर्म केवली भगवान के ज्ञान में झलकते हैं। इसलिये सदैव केवली प्रभु का समरण करते हुए सदैव सतर्क रहते हुए ही कर्म करना चाहिये।

 

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तेरी दो आंखे माने तेरे ही कर्म.शुभ कर्म और अशुभ कर्म.हे प्राणी तु कर्म करते समय सावधान हो जा!! तेरे कर्म काफल तो तुझे ही भुगतना है.

तु जैसाबोयेगा वैसा ही फल पायेगा.ध्यान रखना कर्म करते समय कि तेरी ओर सबका ध्यान है.

हजारोआँखे तुझे देख रही है.बुरे कर्मोंसे दूर रहकरशुभ कर्म करते जा.

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