Jump to content
सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

जीवन में मौलिक क्षण


संयम स्वर्ण महोत्सव

394 views

पूज्य आचार्य श्री ने कहा की महोत्सव प्रारम्भ हुआ जीवन में मौलिक क्षण आये चिरप्रतीक्षित समय आ गया है उमंगें तरंगें हैं सभी के मन में महोत्सव की प्रतीक्षा के लिए जिज्ञासा है , सौभाग्य के क्षण, तोरण द्वार सजे हैं , गीत , संगीत बज रहे हैं सबको प्रतीक्षा है उन क्षणों की । रोंगटे खड़े हो जाते हैं किन्तु महोत्सव किसके लिए है ये किन्तु कहते ही सब में जिज्ञासा जागृत है । होता बही है जो ललाट पर लिखा होता है उसे कोई बदल नहीं सकता ये लेखा मिटाया नहीं जा सकता है । लकीर मिटने से समय का लिखा मिटाया नहीं जा सकता ।  परंतु एक रात में क्या बदल जाय कुछ कहा नहीं जा सकता है । लोकतंत्र में चुनाव 5 बर्ष में होते हैं , लोकतंत्र में 4 काल होते हैं भूत ,वर्तमान्, भविष्य और चौथा कॉल भी होता है बो है आपातकाल। राजा रामचंद्र जी के राज्याभिषेक की तैयारी चल रही होती है परंतु आधी रात को किसी के मोह का जागरण हो गया और शर्तों और अनुबंधों में बंधा राजा विवश हो गया और अपने प्रिय पुत्र राम की जगह कैकेयी पुत्र भरत के राज्याभिषेक और राम के वनवास की मांग को अपने पूर्व बचन का पालन के कारन स्वीकार करना पड़ा । बज्र ह्रदय बाले दशरथ की आँखों में अश्रुओं की धार बेह जाती है परंतु कैकेयी का ह्रदय पिघलता नहीं है । दशरथ मूर्छित हो जाते हैं और शीतोपचार का उपक्रम प्रारम्भ हो जाता है ।उन्होंने कहा की इस तरह के क्षणों पर धिक्कार है जोभारत की पवित्र भूमि पर घटित हो गए जो काला इतिहास लिख गए । कभी कभी शोधित मुहर्त में भी इस तरह की आंधी चल जाती है जो लाखों मनों को विचलित कर जाती है । ये समाचार सुनकर भरत का मन भी उद्धेलित हो जाता है , लक्ष्मण के मन में अनेक विचार जन्म ले लेते हैं परंतु बो भ्राता राम के निर्णय को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं । आचार्य श्री ने कहा की महापुरुषों की ये कथाएँ हमें बार बार पढ़ना चाहिए । राम सबसे पहले ये समाचार सुनकर माँ कौशल्या के पास जाकर वन जाने के लिए आशीर्वाद लेने जाते हैं  फिर कैकेयी के पास जाकर आशीर्वाद मांगते है और कहते हैं में भरत के लिए मन वचन काय से राजा बनने का मार्ग प्रशस्त करने की भावना भाता हूँ  । पिता की आज्ञा शिरोधार्य करता हूँ । भरत ने राम से निवेदन किया की आप नहीं तो आप की चरण पादुकाएं दे दीजिये में उन्हें ही सिंहासन पर विराजमान करके राज काज चलाऊंगा । अपने पिता के चरण छूकर राम कहते हैं पिताश्री मुझे क्षत्रिय धर्म के पालन की आज्ञा और आशीर्वाद प्रदान करें ।कैकेयी की आँखों में आंसू नहीं आये परंतु उसकी कोख से जन्मे भरत की आँखों से आँसृ की धारा बेह रही थी। शासन तो शासन होता है और प्रजातंत्र तो प्रजातंत्र होता है । हमारे स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस का पूरा पूरा सम्मान करना चाहिए । कर्तव्यों के क्षणों से कभी विमुख नहीं होना चाहिए अहिंसा धर्म का पालन करते हुए अनीति को छोड़ नीति पूर्वक कार्य करने के लिए संकल्पवध्द होना चाहिए । जो आपके सामने लक्ष्य है उसे पूर्ण करने के लिए  एकजुट होने की शपथ लें। उत्साह को तालियों तक सीमित न रखकर उसे सदुपयोग में लगाएं । मंदिर के साथ साथ शिक्षा के मंदिर की भी जरूरत है उस दिशा में सबको सोचना चाहिए । आपके कार्यों से आने बाली पीढ़ी को भी प्रेरणा मिलेगी इसलिए संकल्पित हो जाइए ।दिन निकलता है ,शाम होती है , रात होती है पुनः सूर्यनारायण प्रकट होते हैं और हम सोते रहते हैं । हमें जागृत होने की आवश्यकता है ।

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Create an account or sign in to comment

You need to be a member in order to leave a comment

Create an account

Sign up for a new account in our community. It's easy!

Register a new account

Sign in

Already have an account? Sign in here.

Sign In Now
  • बने सदस्य वेबसाइट के

    इस वेबसाइट के निशुल्क सदस्य आप गूगल, फेसबुक से लॉग इन कर बन सकते हैं 

    आचार्य श्री विद्यासागर मोबाइल एप्प डाउनलोड करें |

    डाउनलोड करने ले लिए यह लिंक खोले https://vidyasagar.guru/app/ 

     

     

×
×
  • Create New...