जब हम यात्रा पर जाते हैं
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा क़ि जब हम यात्रा पर जाते हैं तो वाहन में पेट्रोल की आवश्यकता होती है और हमारा वाहन चालक आवश्यकता अनुसार उसमें पेट्रोल डालता है । अब मानलो क़ि किसी कारन से पेट्रोल पंप में पेट्रोल नहीं होने के कारण वाहन में पेट्रोल नहीं भर पाया तब वाहन उतना ही चलेगा जितना पेट्रोल पहले से भरा हो । ऐंसे ही प्रत्येक जीव एक गति से दूसरी गति में जाता है तो उसे कर्मों की ऊर्जा के हिशाब से चलना पड़ता है चाहे बो संसारी हो , चाहे नारकीय हो ,जहां का निमित्त हो बहिन जाना पड़ता है इसमें कोई घपला नहीं किया जा सकता । आदमी सोचे की उसे मनपसंद भव् मिल जाय तो ये सम्भब नहीं है क्योंकि कर्मों की सरकार अलग प्रकार से चलती है , जो आयु कर्म का बंध आप करते हो कर्मों की सरकार उसी हिसाब से गति का निर्धारण करती है ।जिस प्रकार आज के लोकतंत्र में बहुमत के हिसाब से सरकार चलती है, दो तिहाई बहुमत से उसी प्रकार कर्मों में दो तिहाई कर्म जब आपके पक्ष में होते हैं तब कर्मों की सरकार आपके पक्ष में चलती है ।कर्मों से छिपकर कोई बहार नहीं निकल सकता है ,आप निकलकर तो देख लो सब पता चल जायेगा।
उन्होंने आगे कहा क़ि आयु कर्म का बंध बहुत महत्वपूर्ण होता है, जो आपने कर्म किया है उसे तो भोगना ही पड़ेगा । न माता पिता न भाई बहन कोई भी आ जाय आपको अपना कर्म तो भोगना ही पड़ेगा हाँ अपने पुरुषार्थ से कम ज्यादा किया जा सकता है । देव गति में जब आपका आत्मा होता है तो बहाँ से आपको कुछ रियायत मिल जाती है 6 माह पुर्व ही अगले भव् का बंध किया जाता है । ये पूण्य की प्रकृति के कारण होता है । जो सम्यक दृस्टि जीव होता है बो समय रहते संभल जाता है ,आप यदि अपने आपको सम्यक दृष्टि कहते हो तो संभल जाओ । जिस प्रकार आप अपना हिसाब किताब 31 मार्च को व्यबस्थित करते हो ताकि अगले हीसाब में आसानी रहे ।बैसेे ही 6 माह में देवगति में आगामी भव को सुधरने के लिए व्यवस्थित होना पड़ता है । सम्यक दृष्टि जीव सोचता है की मनुष्य भव में ही जीव की मुक्ति की सामर्थ होती है इसलिए बो नर काया को पाने के लिए सुर (देव गति) काया को छोड़नेे तत्पर हो जाता है।
उन्होंने कहा क़ि जिस तरह प्रशासनिक वर्ग स्थाई होता है और राजनेता सीमित समय के लिए बनते हैं और राजनेता को जो मौका मिलता है उसे सही दिशा में लगा दे तो बो भी स्थाई बन सकते हैं उसी प्रकार यदि मनुष्य भव को परमार्थ की दिशा की और मोड़ दिया जाय तो सिद्ध शीला पर स्थाई स्थान मिल सकता है । स्वर्ग के बड़े बड़े देव भी मनुष्य भव को पाने तरसते हैं।
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