चन्दन का स्वाभाव शीतल
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की चन्दन का स्वाभाव शीतल होता है आप तिलक के रूप में माथे पर लगते हो जिस जगह लगाते हो बो केन्द्र बिंदु होता है जहाँ से आपको शीतलता का एहसास सब जगह तक होता है।
परमात्मा का सबको सुख पहुँचाने का दृष्टिकोण होता है इसे ही वीतरागी विज्ञानं कहते हैं।राग से रहित ज्ञान होता है तो तीन लोक में पूज्य ज्ञान होता है , ज्ञान को पूज्यता तभी प्राप्त होती है जब राग का आभाव होता चला जाता है , ज्ञान की पूज्यता इतनी विश्वव्यापी है की आज भी बो वीतरागिता की महक, सुगंध सर्वत्र बिखरी हुई है। केवल स्मरण मात्र से , दर्शन मात्र से हमें बो सुगंधि प्राप्त हो जाती है , पढ़ने मात्र से हो जाती है , जीवन में उतर जाती है।
परमार्थ के माध्यम से स्वार्थ को गौण किया जा सकता है । संसारी प्राणी अपने को छोड़े बिना दुसरे तक नहीं पहुँच पाता , ये संकीर्णता मोह और अज्ञान के कारण होती है , जो हमारे भीतर तक घुसी हुई है।
उन्होंने कहा की आप अपने आँगन में जो पुष्प लगाते हो बो सिर्फ आपको ही सुगंध नहीं देता अपितु पूरे मोहल्ले को महका देता है , ऐंसा वातावरण हमें निर्मित करना चाहिए , धर्म की क्रिया का लाभ दूसरों तक भी पहुँचाया जा सकता है , ये पहुँचाने का उपक्रम अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है । हम अपने आप को ही सुरक्षित रखना चाहते हैं इसलिए हमारी सीमा बंधी हुई है। सब तक पहुँचने का उपक्रम मन से भी किया जा सकता है।
उन्होंने आगे कहा की प्रभु का अस्तित्व सर्वत्र है जिसका स्पंदन हरेक जीव को होता है , कोई वंचित नहीं रह सकता । आप लोगों को खवर ही नहीं ,अखबार बालों को खबर ही नहीं जो इसे प्रकाशित कर देते , आप कहीं भी रहिये प्रभु के आत्मा के प्रदेश आप के भीतर प्रवेश कर सकते है परंतु हम इससे अनभिज्ञ रहते हैं ,हमें भान नहीं हो पाता इससे स्पष्ट है छायिक ज्ञान होना आवश्यक है केवल परोक्ष ज्ञान से काम चलने वाला नहीं है , इसलिए ज्ञान का सही सदुपयोग करना चाहते हो तो प्रभु की शरण जाओ । आप संसार की लीला में फंसे रहते हो और प्रभु की ऊर्जा आपको स्पर्श करके चली जाती है । आत्मा के प्रदेशों के ऊपर जो कर्म शेष रह जाते हैं उन्हें सीमित समय में समाप्त करने के लिए धर्म में ये विधि बताई गई है । प्रभु स्वयं आपका दरवाजा खटखटाते हैं फिर भी आप लोगों की नींद नहीं खुल रही है , प्रभु कान के समीप आकर कहते हैं अब तो जाग जाओ, फिर भी होश नहीं रहता हम गाफिल निद्रा में हैं। जिनवाणी के माध्यम से हम जान रहे है की कितने भावों से प्रभु हमें जगाने आ रहे हैं अनंतकाल से निरंतर ये क्रम चल रहा है । अब तो स्वार्थ का विषर्जन करो, परमार्थ का भजन करो , ये ही कल्याण का मार्ग है।
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