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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

चिकनाहट और रूखापन वस्तुओं की प्रकृतियां


संयम स्वर्ण महोत्सव

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पूज्य आचार्य  श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा क़ि चिकनाहट और रूखापन वस्तुओं की प्रकृतियां हैं। बंधन आसान है परंतु बंधन से मुक्ति आसान नहीं है । मिश्री और घी को मिलाते हैं तो इसकी गुणवत्ता अलग होती है और शहद मिलाते हैं बराबर अनुपात में तो उसकी गुणवत्ता अलग हो जाती है बो बिष बन जाता है । बंध की व्यवस्था अपने आप में महत्वपूर्ण है किसके संयोग से लाभ होता है किसके संयोग से हानि होती है ये समझने की बात है । ज्ञान नहीं होने के कारण संसारी प्राणी फंस जाता है , सब सुख की कामना में भटक रहे हैं, दुःख से मुक्ति पाने के लिए दुःख की उत्पत्ति किस सामग्री से हो रही है ये जानना जरूरी है , जिसको सुख मानते हैं बही दुःख का कारन होता है इसलिए आप पहले दुःख की सामग्री की सूची बनालें । भ्रमित ज्ञान दुःख का कारन है जबकि सुलझा ज्ञान कम भी है तो सुख का कारण होता है। बेडा पार करना चाहते तो हैं परंतु लेकिन इन वाक्यों में उलझ जाते हैं ये निषेधवाचक शब्द हैं।


उन्होंने आगे कहा की भावों, वचनों और चेष्टाओं की तुलना घी, शक्कर और शहद से निर्मित बिष से की जा सकती है । ये तीनों हमारे जीवन के लिए हानिकारक हो जाते हैं ये बिष का काम करते हैं यदि विपरीत प्रयोग किया जाता है । ये सही दिशा में जाएँ तो पूण्य का कारन बन जाते हैं । पूरा निगाह का खेल है यदि निग़ाह आपकी सही दिशा में जायेगी तो आपको जीवन की गुथ्थी सुलझाने में आसानी रहेगी। बिषय कषाय से बचने के लिए और अपनी आत्मा के खाते को पाप कर्मों से मुक्त करने के लिए अपनी निगाह दुसरे पर न डालकर अपने स्वयं के ऊपर डालना प्रारम्भ करेंगे तो आप अपने ऊपर उपकार करेंगे । इसलिए हमारे भगवान् की नासा दृस्टि होती है जो हमें प्रेरित करती है क़ि निगाह स्वयं के ऊपर डालो तो स्वयं भगवान बन जाओ । भगवान करुणा के सागर हैं और आप संसार के पापों के सागर बने हुए हो, उनके मुख से अमृत झरता है आपके मुख से कषाय का झरना फूटता है । सब भीतर के परिणामों का खेल चल रहा है । परिणामों को समझने पर ही धर्म को समझ पाएंगे ,आत्म विज्ञानं को समझ पाएंगे।

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