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वतन की कमान : भारतीय शिक्षा के मूल तत्व पर ओपन बुक प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

स्वतंत्रता दिवस


संयम स्वर्ण महोत्सव

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जो राष्ट्र अपनी मातृभाषा से किनारा करके अन्यत्र भाषा के इस्तेमाल में लगते हैं बो अपनी पहचान खोने लग जाते हैं । ईस्ट इंडिया कंपनी देश छोड़ गई परंतु विरासत में इंडिया थोप गई जिसे हम अभी तक ढोते चले आ रहे हैं  । अंग्रेजी को सहायक भाषा के रूप में उपयोग करना अलग बात है परंतु उसे जबरदस्ती थोपना गलत है।
 

भारत में शिक्षा हिंदी माध्यम से अनिवार्य होना चाहिए तभी तस्वीर बदल सकते हैं । हमारी गुरुकुल परंपरा को भी क्षति पहुंचाई जा रही है जो तक्षशिला में बड़ा केंद्र था शिक्षा का आज वो कहाँ है। सारी दुनिया के लोग यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए लालायित रहते थे। आज भारत के लोग विदेशों में कौनसी शिक्षा लेने जा रहे हैं।


आज हमने इंडिया को विकास के नाम पर जबरदस्ती ओढ़ रखा है और भारत के मूल स्वरुप और संस्कृति को काफी पीछे धकेल दिया है । आज हम हस्ताक्षर भी अंग्रेजी में करने में अपनी शान समझते हैं जबकि विकसित राष्ट्र अपनी मूल भाषा में ही सारा काम करते हैं । हमें संकल्पित होकर अपनी मूल भाषा में ही सारे कार्य करना चाहिए। आज विडंवना ये है की हमारे राष्ट्र के योग्य वैज्ञानिक , तकनीशियन विदेशों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं जिनकी राष्ट्र को आज जरूरत है । प्रबंधन के क्षेत्र में हम सबसे आगे थे परंतु हमारी योग्यता की शक्ति प्रोत्साहन के आभाव में भारत में काम न करके विदेशों में काम कर रही है जिसके कारण प्रबंधन में भी हम पिछड़ रहे हैं।
 

गुरुवर ने कहा क़ि भारतीय अर्थशास्त्री सबसे अधिक योग्य हैं इसलिए मंदी का प्रभाव भारत पर नहीं पड़ा क्योंकि यहां सब अभी भी ठीक संचालित हैं । निर्यात नीति में भी सुधार की आवश्यकता है क्योंकि पहले निर्यात संतुलित था ,आज असंतुलन के कारण परेशानी हो रही है । आज स्वदेशी जागरण की भी सबसे ज्यादा जरूरत है।

 

उन्होंने कहा की सारे भारतीय आज कलाओं से परिपूर्ण हैं । अर्थ से ,परमार्थ से  हर स्थिति में श्रेस्ठ हैं जरूरत है  उन्हें एक सूत्र में पिरोने की , उन्हें उचित मौका प्रदान करने की।
 

गुरुवर ने कहा की मध्यप्रदेश में हरेक क्षेत्र में अंग्रेजी की जगह हिंदी में कार्य करने की कोशिश सरकार द्वारा की जा रही है जो सराहनीय है । आज के दिन संकल्पित हों अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग नहीं सदुपयोग करेंगे और अपनी राष्ट्रभाषा को मजबूत करने की दिशा में कार्य करेंगे । स्वावलंबी बनने के लिए हथकरघा जैंसे उपक्रमों को अधिक से अधिक प्रारम्भ करने का प्रयास करेंगे।
 

INDIA नहीं भारत बोलो

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