कर्मों की निर्जरा के बिना मोक्ष नहीं
जैन संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने कहा है कि ऐसी कहावत है कि फूल बिछाओ, कांटे मत बिछाओ। यदि कांटे देखकर मन में विषमता और प्रतिकूलता आती है तो समझ लो समझ लो वीतरागता का अभाव है। दिगम्बर जैन मुनि मोक्ष मार्ग पर चलते हुए 22 प्रकार के परिषह सहन करते हैं और समता भाव रखते हैं।
अपने आर्शीवचन में आचार्यश्री ने कहा कि श्रावक (भक्त) श्रमण (संत) के निकट तो रहते हैं, लेकिन सन्निकट नहीं आते। इसलिए कांटों से बचाव के बारे में विचार करते हैं। जैन मुनि 22 प्रकार के परिषहों को समताभाव सहन करते हैं और उनमें प्रतिकूल का भाव नहीं आता। कर्म की निर्जरा से बचकर मोक्ष मार्ग पर नहीं बढ़ सकते। मोक्ष मार्ग क्या है यदि आप उस पर चल नहीं सकते तो समझने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। यह भी एक पुरुषार्थ है। आचार्यश्री ने कहा कि कर्मों की निर्जरा भी बुद्धिपूर्वक करना चाहिए, मजबूरी में नहीं। विवेक के साथ किए गए पुरुषार्थ से ही हमें इस परीक्षा में शत प्रतिशत नंबर मिल सकते हैं। मोक्ष मार्ग की परीक्षा और इसके सवाल कठिन होते हैं। इसमें सुविधा नहीं दुविधा हो सकती है।
आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि वीर के सुपुत्र भी वीर होते हैं। जैन धर्म के अनुयायी भगवान महावीर के उपासक हैं। यदि कर्मों से डरेंगे तो मुक्ति कैसे मिलेगी। उन्होंने कहा कि संत और श्रवण की चर्या देखकर इंद्र भी तालिया बचाते होंगे। क्योंकि ऐसी चर्या उन्हें भी संभव नहीं है।
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