Jump to content
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • entries
    108
  • comments
    3
  • views
    20,536

Contributors to this blog

संतत्व से सिद्धत्व की अविराम यात्रा का पथिकन - 78 वां स्वर्णिम संस्मरण


संयम स्वर्ण महोत्सव

346 views

30 जुलाई 1968, श्री भागचंद सोनी जी की नशियाँ बात उस समय की है जब युवा ब्रह्मचारी विद्याधर की मुनि दीक्षा होनी थी। सबसे पहले ब्रह्मचारी विद्याधर ने मुनि ज्ञान सागर जी की चरण वंदना की, उसके बाद मुनि श्री से दिगंबर दीक्षा प्रदान करने हेतु प्रार्थना की। मुनि श्री ने दीक्षा पूर्व जनसमूह के समक्ष अपनी भावनाएं प्रस्तुत करने हेतु विद्याधर को निर्देश दिया।मुनि श्री की अनुमति पाकर विद्याधर ने सिद्धम नम:, सिद्धम नम: के पवित्र उच्चारण के पश्चात आदि तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रशस्ति में मंगलाचरण का उच्चारण किया,पश्चात मुनि ज्ञान सागर जी के चरणो में नमन अर्पित कर जनसमूह को संबोधन किया।
 

आज मैं वंदनीय गुरुदेव का मंगल आशीर्वाद प्राप्त कर भौतिक सुखों को अंतिम प्रणाम कर रहा हूं। युगादि में आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने सर्वप्रथम मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया था। वही सर्वप्रथम निर्ग्रन्थ श्रमण थे। उनके द्वारा प्रशस्त मार्ग का अनुसरण कर अनगिनत भव्य जीव जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्त होकर अतींद्रिय-सुखों को प्राप्त कर सिद्धालय में विराजमान है। जन्म के साथ मृत्यु और संयोग के साथ वियोग जुड़ा हुआ है। इस विशाल विश्व में प्रत्येक प्राणी अपने कर्मों को भोगने के लिए आता है, आयु कर्म समाप्त होने पर नवीन किंतु अज्ञात-गति में गमन कर जाता है। सर्व परिग्रहों का त्याग किए बिना मुक्ति एक कल्पना है, बिना दिगम्बरत्व, सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान,सम्यकचारित्र की उपलब्धि असंभव है। आज मैं मुक्ति के महान एवं दिव्य पथ का पथिक  बनने जा रहा हूं। मेरी साधना सार्थक हो, मैं आदि तीर्थंकर ऋषभदेव और पूज्य गुरुदेव की शरण स्वीकार करता हूं।मैं मुनि श्री ज्ञानसागर जी से करबद्ध प्रार्थना करता हूं, कि मुझे निर्ग्रन्थ-श्रमण की दीक्षा प्रदान करें।।

 

इस प्रकार पूज्य गुरुदेव ने पूज्य ज्ञानसागर जी महाराज जी और जनता के समक्ष अपने ग्रहस्थ अवस्था के अंतिम शब्द प्रस्तुत किये थे, और यही से संतत्व से सिद्धत्व की अविराम यात्रा प्रारंभ की थी, जो आज तक अनवरत रूप से जारी है, जो सिद्धशिला पहुँचने तक निरन्तर गतिमान रहेगी।।  

30 जुलाई 1968(आषाढ़ शुक्ल 5)

(सोनी जी की नशियाँ, अजमेर)

ज्योतिर्मय निर्ग्रन्थ पुस्तक से साभार

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Create an account or sign in to comment

You need to be a member in order to leave a comment

Create an account

Sign up for a new account in our community. It's easy!

Register a new account

Sign in

Already have an account? Sign in here.

Sign In Now
  • बने सदस्य वेबसाइट के

    इस वेबसाइट के निशुल्क सदस्य आप गूगल, फेसबुक से लॉग इन कर बन सकते हैं 

    आचार्य श्री विद्यासागर मोबाइल एप्प डाउनलोड करें |

    डाउनलोड करने ले लिए यह लिंक खोले https://vidyasagar.guru/app/ 

     

     

×
×
  • Create New...