अमूल्य का क्या मूल्य - 64 वां स्वर्णिम संस्मरण
अमूल्य का अर्थ स्पष्ट है, जिसका कोई मूल्य नही आंका जा सकता उसे अमूल्य कहते है। अमूल्य वस्तु को पाना बहुत दुर्लभ होता है उसका समीचीन उपयोग कर पाना और ही दुर्लभ हुआ करता है। संसार मे प्रत्येक वस्तु का मूल्य हो सकता है लेकिन जिनके माध्यम से संसार सागर से पार उतरने की कला सीखी जाती हो वह तो अमूल्य ही होता है। देव-शास्त्र गुरु हमारे आराध्य हैं और पूज्यनीय हैं। इसलिए वे हमारे लिए हमेशा अमूल्य हैं। जहाँ पर श्रद्धा जुड़ जाती है ,अपनत्व होता है, वहाँ कीमत वस्तु नही रह जाती है, वह अमूल्य हो जाता है। उनके सामने तो संसार की सारी संपत्ति तृण के समान प्रतीत होती है। आज शास्त्र (ग्रंथ) पर मूल्य/ कीमत डाली जाती है जो कि शास्त्र का मूल्य कम कर देती है, अमूल्य जिनवाणी पर अभी भी मूल्य नही डालना चाहिए। परमपूज्य आचार्य गुरूदेव ने एक दिन जिनवाणी की विनय कैसे करना चाहिए समजाते हुए कहा - की जिसको हम पूज्य मानते है उसका व्यवसाय नही करना चाहिए।
"जिनवाणी पर मूल्य नही लिखा जाना चाहिए" जैसे माँ के प्रति बहुमान होता है, उससे भी ज्यादा बड़कर जिनवाणी माँ के प्रति आदर/बहुमान होना चाहिए। पूज्य गुरुदेव के इस बात से हमे यह शिक्षा लेनी चाहिए कि कभी-भी कोई भी पुस्तक हो धार्मिक ग्रंथ हो उसपर मूल्य नही डालना चाहिए। कभी भी इन शास्त्र आदि उपकरणों का व्यवसाय नही करना चाहिए। श्रद्धा के साथ इनकी विनय करना चाहिए। तभी हम इनसे समीचीन फल प्राप्त कर सकते है एवं अपनी श्रद्धा को सुरक्षित रख सकते है। क्योंकि अमूल्य पर मूल्य डालना अमुल्य का मूल्य नही समजना है।
छपारा (10.1.2001)
अनुभूत रास्ता पुस्तक से साभार
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.
Create an account or sign in to comment
You need to be a member in order to leave a comment
Create an account
Sign up for a new account in our community. It's easy!
Register a new accountSign in
Already have an account? Sign in here.
Sign In Now