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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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बाहर टेड़ा - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४८६


संयम स्वर्ण महोत्सव

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Haiku (486).jpg

 

 

बाहर टेड़ा,

बिल में सीधा होता,

भीतर जाओ |

 

हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।

 

आओ करे हायकू स्वाध्याय

  • आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं
  • आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं
  • आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं

लिखिए हमे आपके विचार

  • क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं
  • इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?

5 Comments


Recommended Comments

बाहर तेढा,

मनुष्य अपने जीवनमे जैसा है वेसा नही दैखता.या दिखाता.वो अपने अहंकार से ,मान से फूल जाता है.बाहरी दुनियामे दिखावा करता है.ये उसका स्वभाव नही,विभावरुप परिणमन करता है.इसलिये उसे तेढा कहा है., इसीलिये कहते है इसे बाहरी बनावट पण को छोडो.इसोलिये आचार्यश्री कहते है.अपने भीतर आओ.निजस्वभाव को जानो.जैसे जैसे भीतर जाओगे ,सीधा  रास्ता पाओगे. निज से जिन बननेका रास्ता - भीतर आत्मध्यान से ही मिलेगा.आओ भीतर आओ और स्वयं को पाओ.

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इसका उदाहरण सांप बाहर आने पर टेढा चलता है लेकिन भीतर बिल मेसीधा जाता है.अगर अपने भीतर झांककर देखोगे तो निजआत्मानुभूती का अनुभव करोगे.और अगर बाहरी दुनिया कि चकाचौंध मे भूलोगे तो टेढे ही रहोगे.कभी नही सुधरोगे.सीधा उर्ध्वगमन करके सिध्दात्मा बनना ही मेरा स्वभाव है.

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पुदगल परमाणुओं के बीस भेदो में उलझ कर जीव द्रव्य कर्म,भाव कर्म,नो कर्म द्रव्य इन तीन कर्म मल से सहित संसार के बाहर के रूप में मोहित है अथार्त बाहर देखेगे तो संसार का रूप धर्म विरुद्ध है टेड़ा है।बिल में सीधा होता अथार्त चेतना लक्षण युक्त,ज्ञान दर्शन युक्त पदार्थ जीव है जो पुदगल गुण रहित है जो इन्द्रियों से नही जाना जाता है।भीतर जाओ अथार्त अपनी आत्मा जिसे जीव भी कहते हैं पर दृढ़ विश्वास ही निशचय मोक्ष मार्ग है जो अभेद है।

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इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते है कि कब तक बाहरी दुनिया में ही घूमते रहोगे । चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद में जाकर के तुमको यह मनुष्य पर्याय मिली है । अब तो इस बाहरी दुनिया के चक्कर लगाना छोड़ो और अपने आत्मा के स्वभाव में चक्कर लगाओ। तथा भीतर जाए बिना मुक्ति सम्भव नहीं है। अर्थात भीतर जाने का प्रयास करो।

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नमोस्तु गुरूवर?इस छंद में सर्प के उदाहरण से समझाया हैकि अनादिकाल से इस संसार मेंमिथ्यात्व के कारणभटकता रहा अब तो हमें अपने (निजघर)आत्म स्वभाव में लीन हो जाना चाहिए ।

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