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दुस्संगति से बचो - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४०२


संयम स्वर्ण महोत्सव

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Haiku (402).jpg

 

 

दुस्संगति से बचो,

सत् संगति में,

रहो न रहो।

 

हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।

 

आओ करे हायकू स्वाध्याय

  • आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं
  • आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं
  • आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं

लिखिए हमे आपके विचार

  • क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं
  • इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?

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Recommended Comments

दुस्सन्गती जो आत्मा के स्वाभविक गुणो को ढक दे ।जो पथ हीन बना दे।जो चारित्रिक पतन का कारण बनती है। बचना शब्द किसके लिये प्रयोग मे आया है। जो जागृत अवस्था मे है और अपना भला बुरा समझता है। तो उसे तो दुस्सन्गती के परिणाम भली भांति पता होंगे। निस्सन्देह हा ऐसे ज्ञानी के लिये ये सावधानी बरतने की जरूरत नहीं पडती।जरुरत ऐसे मनुष्यो को है जो अल्प ज्ञानी है। जो अपने अच्छे बुरे का फैसला नही कर पाते।उदाहरण के तौर पर समझते हैं- मान लिजिये राम के पिता बहुत धनवान हैं। राम के पास खर्च करने के लिये बहुत धन होता हैं। उसके पास इतना धन देख कर उसके कुछ लोभी दोस्त उसे बुरी आदतों का आदी बना देते है। जो उसके जीवन के साथ घर के भी नष्ट होने का कारण बनती है। यदि समय रहते राम को सत्सन्ग्ती मिल जाती तो वह समय रहते संभल जाता। इसलिये कहा भी गया है कि सत्सन्ग्ती मे रहो न रहो दुसन्गती मे। सत्सन्ग्ती के प्रभाव से हमारा चरित्र हमारा धन हमारा शरीर आदि सभी की रक्षा होती है सो सत्सन्गती का मतलब जीवन को उच्चता की और ले जाने का प्रयास।

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