हरी से हरि तक
नेमावर ,26 अप्रैल 2021
युग शिरोमणि आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज के भगवान महावीर जन्मकल्याणक महोत्सव पर मंगल प्रवचन हुए तो उन्होंने कोल्ड स्टोरेज सिस्टम पर अपनी चिंता जताते हुए कहां कि इनसे निकल कर आ रहे फल सब्जी जहरीले है।अन्न जब 3-4 महीने गर्मी को सहन करता है तब खाने योग्य बनता है।
तब उक्त बातों को सुनकर उनके शिष्यों ने गुरु मार्ग का अनुशरण किया और *आजीवन हरी यानि हरे फल सब्जियों का त्याग कर दिया*
मुनिश्री नेमिसागर जी,
मुनिश्री निरामयसागरजी,
मुनिश्री निर्भीकसागरजी,
मुनिश्री निर्मदसागरजी,
मुनिश्री श्रमणसागरजी,
मुनिश्री संधानसागरजी ,
ऐलक उपशमसागरजी
साधु वृन्दो ने आजीवन हरी का त्याग किया। ऐसे साधकों के चरणों मे कोटिशः नमन इससे ही प्रसंग से संदर्भित गुरु जी का संस्मरण है आइए जानते है
🌈🌈 *हरी नहीं, हरि का नाम लेता हूँ -* सन् १९९३, रामटेक, नागपुर, महाराष्ट्र वर्षायोग के दौरान दशलक्षण पर्व में आचार्यश्रीजी ने हरी सब्जी एवं फलों का त्याग कर दिया। दशलक्षण पर्व पूर्ण होने पर भी जब उन्होंने हरी लेना आरंभ नहीं किया, तब एक दिन ईर्यापथ भक्ति के बाद मुनि श्री प्रमाणसागरजी ने आचार्यश्रीजी से निवेदन किया- ‘आचार्यश्रीजी ! दशलक्षण तो पूर्ण हो गये और आप अभी भी हरी नहीं ले रहे हैं?' आचार्यश्रीजी बोले- ‘जो छोड़ दिया, फिर उसको क्या लेना।'
इतनी अल्पवय में हरी छोड़ने का विकल्प सभी संघ को हुआ। एक बार किन्हीं आर्यिकाओं ने गुरुदेव से कहा कि आपने इतनी जल्दी सभी प्रकार की हरी का त्याग क्यों कर दिया? आचार्यश्रीजी बोले-‘हरी का त्याग किया, पर हरि (भगवान्) का नाम तो लेता हूँ।
*✍🏻शुभांशु जैन शहपुरा*
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