देश का नाम भारत ही लिया और बोला जाना चाहिए - आचार्य श्री
संविधान में संशोधन के लिए दिल्ली के किसान की जनहित याचिका पर 2 जून 2020 को सुनवाई
उच्चतम न्यायालय में याचिका- देश को इंडिया कहना अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक, नाम बदलकर भारत करें; इससे राष्ट्रीय भावना बढ़ेगी
तर्क दिया- अंग्रेज गुलामों को इंडियन कहते थे, उन्होंने ही इंडिया नाम दिया
नई दिल्ली. 30-मई-2020
देश का नाम भारत ही लिखा और बोला जाना चाहिए: जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी
जैन संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज भी इंडिया नाम को लेकर प्रश्न उठाते रहे हैं। भारत को भारत कहा जाए यह बात वह अपने प्रवचनों में कहते रहे हैं। यहाँ तक कि वे 2017 से वे देशव्यापी अभियान भी चला रहे हैं। कुछ दिनों पहले 'भारत बने भारत' नाम से एक यूट्यूब चैनल भी आरंभ किया गया है। आचार्यश्री कहते हैं कि जब हम मद्रास का नाम बदल कर चेन्नई कर सकते हैं, गुड़गाँव का नाम बदलकर गुरुग्राम कर सकते हैं तो इंडिया को हटाकर भारत करने में क्या बाधा है?
श्रीलंका जैसा छोटा सा देश पहले सीलोन के नाम से जाना जाता था, अब श्रीलंका के नाम से जाना जाता है, तो हम क्यों गुलामी के प्रतीक इंडिया को थामे हुए हैं, हमें भी अपने गौरवशाली भारत नाम को पुनः अपनाना चाहिए।
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अंग्रेजी में देश का नाम इंडिया से बदलकर भारत करने की माँग उच्चतम न्यायालय पहुँची है। दिल्ली के किसान नमः ने एक जनहित याचिका दायर कर संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन की मांग की है। इसी के माध्यम देश को अंग्रेजी में इंडिया और हिंदी में भारत नाम दिया गया है। उच्चतम न्यायालय इस याचिका पर 2 जून को सुनवाई करेगा। याचिकाकर्ता का कहना है कि इंडिया नाम हटाने में भारत सरकार की विफलता अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक है। देश का नाम अंग्रेजी में भी भारत करने से लोगों में राष्ट्रीय भावना का विकास होगा और देश को अलग पहचान मिलेगी।
यह सुनवाई मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ में होगी। इस मामले में सुनवाई शुक्रवार को होनी थी, लेकिन श्री बोबडे की अनुपस्थिति के कारण इसे आगे बढ़ा दिया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि प्राचीन काल से ही देश को भारत के नाम से जाना जाता रहा है। परंतु अंग्रेजों की 200 वर्षों की गुलामी से मिली आजादी के बाद अंग्रेजी में देश का नाम इंडिया कर दिया गया। देश के प्राचीन इतिहास को भुलाया नहीं जाना चाहिए इसलिए देश के मूल प्रामाणिक नाम भारत को मान्यता दी जानी चाहिए। उन्होंने दलील दी है कि इंडिया नाम हटाने में सरकार की विफलता अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक है। अंग्रेज गुलामों को इंडियन कहकर संबोधित करते थे। उन्होंने ही देश को अंग्रेजी में इंडिया नाम दिया था। 5 नवंबर 1948 को संविधान के प्रारूप 1 के अनुच्छेद 1 के मसौदे पर बहस करते हुए एम. अनंतशयनम अय्यंगार और सेठ गोविंद दास ने देश का नाम अंग्रेजी में इंडिया रखने पर जोरदार विरोध दर्ज कराया था।
उन्होंने इंडिया की जगह अंग्रेजी में भारत, भारतवर्ष और हिंदुस्तान आदि नामों का सुझाव दिया था। मगर, उस समय इस पर ध्यान नहीं दिया गया। अब इस गलती को सुधारने के लिए न्यायालय केंद्र सरकार को निर्देश दे कि अनुच्छेद 1 में संशोधन कर अंग्रेजी में देश का नाम भारत किया जाए।
साभार - दैनिक भास्कर
समाचार पत्र की कतरन-
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