मेरे लिए किताब का प्रकाशन महत्वपूर्ण नहीं है, किताब से कितना प्रकाश मिलता है यह महत्वपूर्ण है: आचार्य श्री
खुरई के श्री गुरूकुल लाल जैन मंदिर परिसर में हुए प्रवचन : हिन्दी भाषा सर्वाेपरि है, इसमें प्राचीनकाल में जाे शाेध हुए, उन पर ही अब विदेशी शाेध कर रहे हैं छोटा बालक अंतस जैन ने किया गोलक की राशि का दान किया व किया आचार्य श्री का पद प्रक्षालन
खुरई (सागर)- आचार्य गुरुदेव की मंगल देशना रविवार 23 दिसंबर गुरुकुल प्रांगण। बड़ी तादात में उपस्थित जनसमूह ।
खुरई - हम 70 वर्ष बाद भी पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं हाे पाए, अंग्रेजी आज भी हमें परतंत्रता की बेड़ियाें में जकड़े हुए है, हम तब ही स्वतंत्र होंगे जब हमारे मन से अंग्रेजियत का भूत समाप्त होगा। जब तक हम भारतीय संस्कृति के अनुरूप अपने बच्चों को संस्कार नहीं देंगे। अपनी मातृभाषा हिन्दी को नहीं अपनाएंगे तब तक हमारा हित संवर्धन नहीं हो पाएगा।
पाश्चात्य संस्कृति में भौतिक सुख की प्राप्ति तो हो सकती है परन्तु आत्मिक शांति मिलना बहुत दूभर काम है। हिन्दी भाषा सर्वोपरि है, काैन कहता है कि हिन्दी में शाेध नहीं हाे सकता, हिन्दी से देश विकास नहीं कर सकता, अंग्रेजियत की साेच हमारे ऊपर लाद दी गई। जिन देशाें ने अपनी भाषा काे अपनाया वह विकसित हाे चुके हैं, चीन, फ्रांस, इजरायल,रूस, जर्मन जैसे देशाें में अंग्रेजी का काेई स्थान नहीं है। वह अपनी मातृभाषा से विकसित देश बने हैं। यह बात गुरुकुल के लालजैन मंदिर परिसर में आयोजित धर्मसभा में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने लगातार 89 मिनट प्रवचन देते हुए कही। उन्हाेंने राष्ट्र में व्याप्त गंभीर समस्याओं बेरोजगारी, आतंकवाद, सांप्रदायिक तनाव, चारित्रिक पतन, अराजकता, भुखमरी, आरक्षण जैसे मुद्दों पर मर्मस्पर्शी उद्बोधन दिया। उन्हाेंने कहा कि मेरे लिए किताब का प्रकाशन महत्वपूर्ण नहीं है, किताब से कितना प्रकाश मिलता है यह महत्वपूर्ण हैं। बच्चाें काे वह किताबें पढ़ने मिलें जिनसे उनका जीवन आलाेकित हाे सके। हम देख रहे हैं कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमारे बच्चों को अनेक प्रकार की डिग्रियों से तो विभूषित कर देती है, पालकों के लाखों रुपया व्यय करने के बाद भी रोजगारोन्मुखी शिक्षा नहीं दे पाती।
मात्र 5-6 हजार रूपए के वेतन के लिए अनेक पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट हजारों की संख्या में पंक्तिवद्ध खड़े नजर आते हैं, ऐसी शिक्षा किस काम की। यदि विश्व के विकसित राष्ट्रों पर नजर डाली जाए तो उनमें से चीन, अमेरिका जैसे अधिकांश राष्ट्रों ने सिर्फ इसलिए सफलता पाई कि उन्होंने अपनी मातृभाषा में ही बच्चों को पढ़ाकर योग्य एवं नेक इंसान बनाया। हम अपनी मातृभाषा हिन्दी को अपनाकर ही विकसित राष्ट्र की श्रेणी में अग्रिम स्थान प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं।
रविवार काे नवीन जैन मंदिर में आचार्यश्री के पूजन से पहले पैर प्रक्षालन एवं शास्त्र भेंट की बाेली लग रही थीं। तभी एक बच्चा अंतस जैन पिता सुनील जैन शुद्ध वस्त्राें में अपनी गुल्लक लेकर मंच के पास पहुंच गया। संचालन कर रहे सुनील भैया जी काे गुल्लक दिखाई। तब उन्हाेंने मंच पर बच्चे काे बुला लिया, उससे पूछा क्या बात है। उसने आचार्यश्री के समक्ष गुल्लक रखकर निवेदन किया कि गुल्लक की राशि दान कर आपके पैर प्रक्षालन करना चाहता हूं। बच्चे की बात सुनकर सभी भाव विभाेर हाे गए। आचार्यश्री ने चरण छूने की अनुमति दी, बच्चे ने आशीर्वाद लिया, फिर पैर प्रक्षालन भी कराए। बच्चे की भावना और संस्काराें के बारे में भैया जी ने कहा, यह हमारी संस्कृति है।
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