"मूकमाटी" भोज विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में जुड़ी
"मूकमाटी" भोज विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में जुड़ी
दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी के द्वारा आधुनिक हिन्दी महाकाव्य में अप्रतिम योगदान स्वरूप धर्म, दर्शन और आध्यात्मिक दृष्टि से सम्पन्न लोकविश्रुत कालजयी ‘मूकमाटी' महाकाव्य का सृजन किया गया है। मानव जीवन मूल्यों एवं साहित्य के भूलते जा रहे आस्था भाव को युवा पीढ़ी एवं छात्रों को प्रदान करने वाली इस अभिनव कृति को म. प्र. भोज( मुक्त विश्वविद्यालय, भोपाल के एम. ए. हिन्दी पूर्वार्ध-स्नातकोत्तर उपाधि पाठ्यक्रम में अब शामिल किया गया है।
हिन्दी सन्त काव्य परम्परा तथा आचार्य विद्यासागर के काव्य में लोक मंगल भावना, आचार्य विद्यासागर-जीवन और व्यक्तित्व परिचय, आचार्य विद्यासागर का जीवन दर्शन एवं रचना संसार (संक्षिप्त परिचय), ‘मूकमाटी' का महाकाव्यत्व- उद्देश्य, कथानक, पात्र योजना एवं चरित्र चित्रण, संवाद योजना, परिस्थिति चित्रण, अभिव्यंजना सौंदर्य का विश्लेषण व 'मूकमाटी' के प्रमुख पद्यों की व्याख्या रूप इस प्रश्न पत्र में पाँच इकाइयाँ समायोजित की गई हैं। चार प्रश्नपत्रों वाले इस पाठ्यक्रम की पुस्तकें विश्वविद्यालय से प्राप्त की जा सकती हैं।
इस पाठ्यक्रम में शामिल होने हेतु ऑन् लाइन फार्म भरे जा रहे हैं। लगभग पचपन सौ रुपये शुल्क वाले इस चतुर्थ प्रश्नपत्र में विशेष कवि - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज कृत 'मूकमाटी' को पढ़ाए जाने वाले इस पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के इच्छुक विद्यार्थियों को आगामी ३० सितम्बर तक ऑन लाइन ही फार्म भरना होगा। परीक्षा में तैयारी कराने हेत डॉ. शीलचन्द पालीवाल, पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष - एस. एस. एल. जैन पी. जी. कॉलेज, स्वर्णकार कॉलोनी एवं शिक्षक निर्मलकुमार जैन, गाड़ी अड्डा रोड, गल्ला मण्डी के पास, | विदिशा से सम्पर्क करके निःशुल्क मार्गदर्शन लिया जा सकता है।
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