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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

प्रवचन संकलन

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जन्म मरण के चक्र को तोडे़ं

रायपुर राजधानी के टैगोर नगर में इन दिनों धर्म की अमृतधारा बह रही है। यहां संत शिरोमणी आचार्य गुरूवर 108 विद्यासागर जी महाराज ससंघ विराजमान है। आचार्य श्री विनय अपने मंगल प्रवचन में एक दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि फल फुल से आता है, और फुल वृक्ष में उत्पन्न होता है। और वृक्ष की उत्पत्ति बीज से होती है, बीज फल से प्राप्त होता है। इस तरह यह चक्र चलता रहता है, बीज से वृक्ष, वृक्ष से फूल, फूल से फल और फल से पुनः बीज प्राप्त होता है। उन्होने श्रावको से सवाल किया इस चक्र को कोई तोड़ सकता है क्या तो सभी ने

आत्मा का वैभव न्यारा है और वर्णनातीत है

आज को नहीं देखा तो आज और कल दोनों हाथ से निकल जाएंगे जगदलपुर, 07 जनवरी। राष्ट्र संत शिरोमणी आचार्य विद्यासागरजी ने कहा कि जिस तरह स्टेशन में ट्रेन आ रही हो और हल्लागुल्ला हो रहा हो रहा है और रेडियो, टीवी भी चल रहा हो उसी समय किसी का मोबाईल आ जाये तो केवल उससे ही संपर्क होता है उसी तरह संत मुनि, श्रुति व ग्रंथों के माध्यम से पूर्व में घटी घटनाओं और विषयों को जान लेते हैं और उसका आनंद लेते हैं। दुकान पर हम आज नगद कल उधार लिखते हैं, लेकिन ग्राहक से ऐसा नहीं कह सकते। कल का कोई स्वरूप तो हमने दे

दर्पण हमें अपनी कमियां दिखलाता है

राष्ट्र संत जैनाचार्य विद्यासागरजी ने कहा कि वीतराग प्रभु को देखकर हमारे भाव शुद्ध होते हैं। मुनिराज भी पूज्य होते हैं, इनकी उपासना के महात्मय को चक्रवर्ती भरत और बाहुबली की कथा सुनाते हुए कहा कि अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए दोनों बाहुबल से लड़ रहे थे, किंतु सब कुछ जीतने बाद भी बाहुबली ने अपना सर्वस्व त्याग कर बैराग्य धारण कर लिया। उन्होंने कहा कि दर्पण हमें हमारी कमियां दिखाता है। हम अपनी कमियों को दूर कर भगवान की भक्ति पूजन करें, यही संदेश हमें प्रभु से मिलता है। आकांक्षा लॉन में दो

शिक्षा का स्वरूप बिगड़ गया है

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि आज विवाह का उद्देश्य बदल गया है। प्राण ग्रंथों में कथायें आती हैं पहले ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करते थे, गुरूकुल पद्धति से शिक्षा होती थी संस्कार दिये जाते थे, आज शिक्षा का स्तर बिगड़ गया है। समवशरण विधान के छटवें दिन राष्ट्रीय संत छत्तीसगढ़ के राजकीय अतिथि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने एक कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि एक लड़का शुक्ल पक्ष और लड़की कृष्ण पक्ष ब्रम्हचर्य व्रत ले लेते हैं और आजीवन निभाते हैं। आचार्य श्री ने दिल्ली के कलाकारों द्वार

मन और इन्द्रियों पर विजय पाना ही जैन धर्म का सार है

राष्ट्र संत आचार्य विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि जैन धर्म भावों पर आधारित है। भावों से ही व्यक्ति का उत्थान और पतन होता है। जैन धर्म की परिभाषा बताते हुए उन्होंने कहा कि जैन वह होता है जो मन और इंद्रियों पर विजय पाता है। इंद्रियों को जीतना ही संयम है और संयम व्यक्ति के सच्चे सुख के लिए आधार प्रदान करता है। स्थानीय होटल आकांक्षा के लान में दिगम्बर जैन समाज द्वारा आचार्य विद्यासागर के सानिध्य में चल रहे समवशरण चैबीसी विधान में राष्ट्रीय संत के रूप में एवं गणधर परमेष्ठि के पद पर आसीन गुरूवर ने अपने

आग और धन पर सफलता के लिए बहुत जरुरी है नियंत्रण

प्रातरूकाल उठते ही सबसे पहली जरुरत आदमी को अग्नि की होती है। चाहे वह पानी गरम करने के लिए हो अथवा भोजन बनाने के लिए या फिर प्रकाश करने के लिए, हर कार्य के लिए अग्नि की जरुरत होती है। उसी प्रकार से धन पर भी नियंत्रण रखना अतिआवश्यक होता है। यदि धन आने के बाद उस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो वह भी विनाश का कारण बनता है। यहां प्रवास कर रहे आचार्य श्री  विद्यासागर महाराज ने एक जनसभा को स्थानीय जैन दिगम्बर मंदिर में प्रवचन करते हुए उक्त बातें कहीं।   उन्होंने आगे कहा कि यदि सीमा से अधिक अग्रि

भगवान की भक्ति से होता है कल्याण

भगवान की भक्ति से भक्त अपने आप को स्वयं भगवान बना सकता है। इसी उद्देश्य को लेकर आगामी तीस दिसंबर से आठ जनवरी तक छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के मुख्यालय जगदलपुर में चैबीसी समवशरण विधान का आयोजन हो रहा है।   आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने नगर में होने वाले इस विश्व शांति महायज्ञ और चैबीसों जैन तीर्थंकरों की पूजा का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा कि यह पुण्य अवसर है कि समूचे भारत वर्ष में तीसरे स्थान पर यह विशेष अनुष्ठान का आयोजन हो रहा है। इसके लिए सीमित समय में बस्तर के दिगंबर जैन समाज ने

टेंशन  नहीं करो मैडिटेशन  करो।

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि साक्षात महावीर भगवान आज नहीं है लेकिन उनके द्वारा बताया हुआ मार्ग तो है। यह धारा अनादि अनिधन है। जिनेन्द्र भगवान के द्वारा दिया हुआ यह चिन्ह है। यहाँ व्यक्ति की पूजा नहीं व्यक्तित्व की पूजा होती है। मुद्रा घर की नहीं रहती है, देष के द्वारा छपती है, उसके लिये सभी मान्यता देते हैं। विदेश  की मुद्रा से यहाँ व्यापार नहीं होता है उसके लिये करेन्सी को कन्वर्ट करना पड़ता है। जीवन का निर्वाह नहीं निर्माण करन

शिक्षा  का मंदिर महत्वपूर्ण है। 

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि आज के दिन प्रभु को मुक्ति मिली उनका निमित्त   पाकर असंख्य जीवों का कल्याण हुआ है। आज प्रातः हमने वर्षायोग का निष्ठापन किया है। प्रतिभा स्थली बनाने की भावना छत्तीसगढ़  वालों की बहुत अच्छी है और वे अच्छा प्रयास भी कर रहे हैं। इसमें बहुत लोगो ने सहयोग किया है। अभी हमने आग्रह स्वीकार नहीं किया है। प्रतिभा स्थली की रेंज कहाँ तक है यह अभी ज्ञात नहीं होगा। ज्ञान को सर्वगत कहा है, शिक्षा  से जिंदगी क्या अगला

दुर्जन से की गई मित्रता हितकर नहीं होती दुःख दायक होती है।

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छ्त्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि दुर्जन से की गई मित्रता हितकर नहीं होती दुःख दायक होती है। कोई रूधिर से सने हुए वस्त्र को रूधिर से ही धोता है तो वह विषुद्ध नहीं होता है। उसी तरह वह आलोचना शुद्धि दोष को दूर नहीं करता। जिन भगवान के वचनों का लोप करने वाले और दुष्कर पाप करने वालों का मुक्ति गमन अति दुष्कर है। यदि उपचार नहीं कर सकते मरहम पट्टी नहीं कर सकते तो डण्डा तो मत मारो उस रोगी को। मैत्री उससे करो जो समय पर काम दें। सभा उसी का ना

मांस निर्यात शर्मनाक है । 

चंद्रगिरि डोंगरगढद्य छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि कर्नाटक वालों ने कहा कुछ उद्बोधन  कन्नड़ में हो, तो हम कुछ पंक्तियाँ सुनाते हैं – ‘‘मेहनत करो तो मीठा खाना भी सार्थक होता है ’’। एक पिता ने अपने पुत्र को पत्र लिखा उसमें धन को शक्ति कहा है लेकिन इसका दुरूपयोग नहीं करना। गाय, भैंस, हाँथि, घोड़े आदि को भी धन कहा है। आज भारत से मांस का निर्यात हो रहा है और गोबर अर्थात खाद का आयात हो रहा है यह शर्मनाक है। जिससे पशुओं की हिंसा हो रही है। गुरू जी (आचार

धन का दुरूपयोग नहीं करें।

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, भव पाँच प्रकार के संसार का वर्णन किया गया है। अनंत संसार सागर में मनुष्य पर्याय पाना दुर्लभ है। मनुष्य क्षेत्र अल्प है, त्रिर्यंच तो सब जगत में उत्पन्न होते हैं। बालू की लकीर के समान क्रोध, लकड़ी के समान मान, कीचड़ के समान लोभ है। दूसरे पर झूठा दोष लगाना, दूसरे के गुणों को न सहना, ठगना ये दुर्जनों के आचार है। दूसरे के धन को किसी भी बुरे माध्यम से लेना खोटा कार्य है। धन से भ

योद्धा जैसा होता है साधक।

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि यह जीव आहार मय है, अन्न ही इसका प्राण है। अनुशासन  में रहना कठिन होता है। सिंह को भी रिंग मास्टर अपने काबू में कर लेते हैं। ज्ञानी आचार्य के द्वारा श्रुत का ज्ञान कराने से और योग्य शिक्षा  रूप भोजन से उपकृत होने पर भूख प्यास से पीडि़त होते हुए भी ध्यान में स्थिर होता है। अनुशासन  रूपी भोजन 24 घंटे करो आप। डाॅ. रोगी के आवेश  से हताश  नहीं होते हैं और होने भी नहीं देते, रोगी को “यू आर प्रोग्रेसिव” कहते

आत्मा की कोई ऐज नहीं होती।

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने  एक वृद्ध का दृष्टांत सुनाते हुये कहा कि आपकी क्या चीज गुम गई है ? तो उन्होने कहा कि जवानी मेरी कहीं धूल में गुम गई है वह ढूंढ़ रहा हूँ। हम ठान ले तो कोई काम असंभव नहीं है । पासिबिलिटी  रहती है तो कार्य होता है। आत्मा की कोई ऐज नहीं है इसलिये अपने आपको वृद्ध या जवान नहीं समझें। चींटी में वही आत्म तत्व है और बड़े पशुओं आदि में भी वही आत्म तत्व है। जितना जाना माना उस पर शोध प्रारंभ कर दो। आँखें बंद करोगे तो आ

गाय से वात्सल्य करें ।

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि मेहमान के यहाँ खुलकर के कार्य नहीं कर पाते हैं संकोच से करते हैं। विदेश  में ऐसे प्रयोग कर रहे हैं गाय का दूध 45 रू. लीटर है। उस दूध का नाम अहिंसक दूध रखा है, वहाँ गाय के नाम भी रखे जाते हैं श्यामा, गोरी आदि शब्दों में अंतर आ जाता है, वह दूध ज्यादा देती है। आपके प्रेम, वात्सल्य से बहुत अंतर आता है जैसे बच्चों में आहलाद होता है वैसे ही गायों में होता है। उस दूध का सेवन करने के बाद कहते हैं ऐसा स्वाद क

सरकार की बुद्धि ठीक करें अहिंसा यूनियन से ।

मंच संचालक चंद्रकांत जैन ने बताया कि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के सानिध्य में विश्व   अहिंसा दिवस मनाया गया वैसे भी देखा जाये तो महात्मा गांधी जी का जन्म भी अक्टूबर में हुआ और आचार्य श्री विद्यासागर जी का भी जन्म अक्टूबर में हुआ । दोनों महापुरूषों ने अहिंसा का शंखनाद किया। आचार्य श्री के आशीर्वाद , प्रेरणा एवं उपदेश  से पूरे भारत में लगभग 100 गौशालायें चल रही है । हिंसा को मिटाने के लिये अहिंसा का प्रचार आवश्यक  है। आचार्य श्री के हृदय में  बहुत अनुकम्पा, दया है। वह प्रवचन में गाय की रक्ष

ट्राय अगेन एण्ड अगेन  

छत्तीसगढ़  के प्रथम दिगम्बर जैन तीर्थ चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने रविवार को हुये प्रवचन में कहा की कई वर्ष पूर्व भोपाल में हुये त्रासदि के कारण आज भी  कई जगहो के जल विषाक्त हैं। सबसे ज्यादा प्रदूषण उत्पादक मनुष्य स्वयं ही है। पर्यावरण दूषित करते हैं मनुष्य। दूषित मन को सत्साहित्य एवं उपदेश  के माध्यम से हम ठीक कर सकते हैं। जल कितना भी दूषित क्यों न हो दिशा   चेंज कर विधिवत उसे साफ (प्यूरीफाई) किया जा सकता है। मन को फिल्टराईज करें। गाड़ी चलाने वा

वोट नहीं देते लेकिन सपोर्ट देते हैं।

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि अशोभनीय  गुण वाले मनुष्य के संसर्ग से मनुष्य उसी की तरह स्वयं भी अशोभनीय गुणवाला हो जाता है। दुर्जनों की गोष्ठी के दोष से सज्जन भी अपना बड़प्पन खो देता है। फूलों की कीमती माला भी मुर्दे पर डालने से अपना मूल्य खो देती है। दुर्जन के संसर्ग से लोग व्यक्ति के सदोष होने की शंका करते हैं। जैसे मद्यालय में (शराब की दुकान में) बैठकर दूध पीने वाले की भी मद्यपायी (शराबी) होने की शंका करते हैं। लोग दूसरों के दो

सज्जनों के संग दुर्जन भी पूजित होता है

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि जैसे सुगंध से रहीत फूल भी “वह  देवता का आशीर्वाद है ” ऐसा मानकर सिर पर धारण किया जाता है। उसी प्रकार सुजनों के मध्य में रहने वाला दुर्जन भी पूजित होता है। जिसको धर्म से प्रेम नहीं है तथा जो दुःख से डरता है वह मनुष्य भी संसार भीरू के मध्य में रहकर भावना , भय, मान और लज्जा से पाप के कार्यों से निवृत होने का उद्योग करता है। अपने ही भरण – पोषण में लगे रहने वाले क्षुद्रजन तो हजारों हैं किन्तू परोपकार ही ज

भक्ति से डर भाग जाता है। 

चंद्रगिरि डोंगरगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि जिन भक्ति जिनके हृदय में होती है उसे संसार से डर नहीं लगता है। जब अपने भीतर है तो माँगने की क्या आवष्यकता है। अच्छे व्यक्ति माँग करते हैं जैसे नेताओं से माँगते हैं। धर्म कर्मों को नष्ट करता है। मेरू की तरह निष्चल भक्ति होनी चाहिये। बगुला जैसी भक्ति नहीं होना चाहिये। श्वास – श्वास में भगवान के प्रति समर्पण होना चाहिये। कोई कुछ भी कह दे आस्था मिटती नहीं है । यदि अटूट भक्ति है तो भक्त बनते ही प्रत्येक क्षण भगवान

मोबाईल का उपयोग सीमित हो !

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि अपनी प्रषंसा करने से अपने गुण नष्ट हो जाते हैं। अपनी क्षमता का उपयोग करें मन को वष में करें । मोबाईल मंदिर में संत निवास में सब जगह बजते रहते हैं कोई ध्यान नहीं देता है इससे बहुत सी बीमारियाँ भी होती है इसका सीमित उपयोग करें। ग्रन्थों के दृष्टांत देकर आचार्य श्री ने कहा कि धन का उपयोग पुण्य कार्यों में करो वह तो नष्ट होगा ही यदि पुण्य कार्यों में उपयोग करेंगे तो और पुण्य बंध होगा। अपनी क्षमता का उपयो

पाजीटिव पावर आता है।

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि वैराग्य वर्धक वाले के पास बैठने से वैराग्य वर्धन होता है। कई लोग बोलते हैं दुकान अच्छी चलती है तो क्या पहिये लगे हैं जो चलती है लेकिन बोला जाता है । विकासषील जो होते हैं उनसे मिलते रहो तो आपका विकास होगा। आज बाजार कुछ लोगो के हाथों से चल रहा है। कम मूल्य वाली वस्तु को ज्यादा मूल्य में बेचेंगे तो वह पैसा बीमारियों में जायेगा। महापुरूषों का नाम लेने से पाॅजीटिव पावर आता है। सज्जनों के द्वारा अपमान भी ठ

अपनी प्रषंसा घातक है।

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि सभी आत्मा एक सी है, मैं छोटा मैं बड़ा यही नहीं सोचना चाहिये। सज्जन मनुष्यों के बीच में अपने विद्यमान की गुण की प्रषंसा सुनना लज्जित होता है। तब वह स्वयं ही अपने गुणों की प्रषंसा कैसे कर सकता है। जिस समय वस्तु हम चाहते हैं नहीं मिलती है। अपनी प्रषंसा स्वयं न करने वाला स्वयं गुण रहीत होते हुये भी सज्जनों के मध्य में गुणवान की तरह होता है। कस्तूरी की गंध के लिये कुछ करना नहीं होता है। वचन से गुणों का कह

आउट लाइन को देखो !

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की  भगवान् की पीठ के दर्शन और फोटो महत्वपूर्ण है वह आस्था के सांथ हो तो | पत्रिका में लेख माला चलती है और लिखा रहता है क्रमश: ऐसा ही यहाँ होता है | रत्नकरंडक  श्रावकाचार में आचार्य समतभद्र जी ने शिल्पी का उदाहरण दिया है लोहे में जंग होता है तो वह कार्य नहीं करता है ऐसे ही हमें मन की जंग साफ करना होगी तभी कोई अच्छी वस्तु कार्य करेगी उपदेश का प्रभाव होगा | कई लोग पल्ला बिछाकर दर्शन करते हैं भगवान् से मांग

धन विदेष में क्यों रखते हैं।

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि करोड़ो रूपयो का व्यय होने पर भी कुछ नहीं हो रहा है और कहते हैं कि आप जानों, और कहते हैं कि श्ष्वेत क्रांतिश् है । शासन क्या है आप जानो। कमा – कमाकर रख रहे हो क्या होगा, केवल नारे लगाने से कुछ नहीं होगा। आज दूध में मिलावट हो रही है, वह दूध बच्चों को भी पिलाया जाता है कितनी सारी बिमारियाँ होती है। धन विदेषों में रखते हैं क्योंकि माता – पिता, भाई – बहन, पति/पत्नि पर विष्वास नही रहता है। कोई ड्रेस एड्रेस
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