अकलतरा: उक्त बातें जैन समाज के संत षिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए बालक प्राथमिक शाला में कही। उन्होंने कहा कि दूसरों का वैभव देखकर हम अपना हाथ मलते हैं तथा ईष्या करते हैं। हम पुरुषार्थ के द्वारा जीवन में तरक्की एवं आगे बढ़ सकते हैं। इससे हमें अपना हाथ नहीं मलना पड़ेगा। हम भाग्य भरोसे रहकर पुरुषार्थ पर विष्वास नहीं करते एवं दूसरों को अपनी हाथ की रेखा दिखाने का कार्य करते हैं एवं दूसरे व्यक्ति पर बातचीत से हल नहीं निकलने पर अपना हाथ उसपर छोड़ देते हैं, जो
जो राष्ट्र अपनी मातृभाषा से किनारा करके अन्यत्र भाषा के इस्तेमाल में लगते हैं बो अपनी पहचान खोने लग जाते हैं । ईस्ट इंडिया कंपनी देश छोड़ गई परंतु विरासत में इंडिया थोप गई जिसे हम अभी तक ढोते चले आ रहे हैं । अंग्रेजी को सहायक भाषा के रूप में उपयोग करना अलग बात है परंतु उसे जबरदस्ती थोपना गलत है।
भारत में शिक्षा हिंदी माध्यम से अनिवार्य होना चाहिए तभी तस्वीर बदल सकते हैं । हमारी गुरुकुल परंपरा को भी क्षति पहुंचाई जा रही है जो तक्षशिला में बड़ा केंद्र था शिक्षा का आज वो कहाँ है। सारी दुनिय
मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज : (कुंडलपुर) [17/05/2016]
कुण्डलपुर। सुप्रसिद्ध जैन सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर में श्रमण शिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि स्व-अर्थ की पूर्ति स्वस्थ होने पर ही संभव है। द्वेष की अग्नि राख में दबे अंगारे की भांति भीतर सुलगती रहती है। अंगारे हो अंदर तो बाहर शांति कैसी? विद्यासागर सभागार में श्रोताओं को सीख देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि नत भावों के साथ ही उन्नत बन सकते हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि राम-रावण द्वन
डिंडौरी (मप्र)- सोयावीन भारत का बीज नहीं है, यह विदेशों में जानवरो को खिलाने वाला आहार है। उक्त उदगार दिगम्बर जैनाचार्य श्री विधासागर जी महाराज ने मध्यप्रदेश के वनांचल में वसे डिंडौरी नगर में एक महती धर्म सभा को सम्बोधित करते हुऐ व्यक्त किये। आचार्य श्री ने वताया कि भारत मे सोयावीन से दूध,विस्किट, तेल आदि खाद्यय उपयोगी वस्तुएं लोग खाने में उपयोग कर रहे है। सोयावीन का बीज भारत मे षणयंत्र पूर्वक भेजा गया है। इसे अमेरिका जैसे अनेक देशों में शुअर आदि जानवरों को खिलाने के लिये उत्पादित करते है।
चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में आयोजित प्रवचन सभा को सम्भोधित करते हुए दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की जब उपसर्ग आता है तो साधू जब ताल नहीं पाते तब संलेखना ले लेते हैं ! भयंकर दुर्भिक्ष हो, भयंकर जंगल में भटक गया हो तो भी संलेखना लेते हैं ! चाहे विज्ञान हो चाहे वीतराग विज्ञान हो दोनों ही बताते हैं की गलत आहार भी प्राणों को संकट पैदा करता है ! दुर्भिक्ष पड़ने पर साधू आहार का त्याग कर देते हैं ! जो ज्यादा सोचता है वह जंगल में भटक जाता है, आज विज्ञान भी भटक रहा है ! वर्मुला ट्रग
दिन में आप सूर्य को ही मात्र देख सकते हैं ज्योतिष मंडल में बहुत प्रकार के तारामंडल विद्यमान रहते हैं सूर्य के प्रकाश से हम सभी वस्तुओं को तो देख सकते हैं परंतु ज्योतिष में विद्यमान तारामंडल को नहीं देख सकते। तारामंडल बहुत चमकदार होते हैं । लेकिन प्रभाकर का प्रकाशपुंज इतना तेज होता है कि उस प्रकाश के कारण संपूर्ण तारामंडल लुप्त रहता है । चंद्रमा ज्योतिष मण्डल मे गायब तो नहीं होता लेकिन पर वह अपना प्रकाश भी नहीं फैला पाता है चंद्रमा अपना प्रकाश सूर्य के सामने नहीं फेंक सकता । ऐसा क्यों होता है क
शुभ भाव, संयम और समभाव को हमेशा ऊपर उठाना चाहिये |
डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि आप सुबह उठते हैं तो आमोद, प्रमोद के साथ उठते हैं आपका आलस्य दूर हो जाता है | शारीरिक परिस्तिथियाँ जिसकी ठीक नहीं उसको भी आराम सा लगता है | स्वास्छोस्वास (सास लेना एवं छोड़ना) कि प्रक्रिया बहुत ही सुव्यवस्थित चलने लगती है | पूर्व कि ओर गुल
प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {30 नवंबर 2017}
चन्द्रगिरि, डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने एक दृष्टांत के माध्यम से बताया कि एक पिता अपने बेटे को सही राह (धर्म मार्ग) बताता है, परंतु बेटे को पिता की बात कम ही समझ में आती है। वह केवल अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु प्रयत्न करता है और उसमें सफलता भी प्राप्त करता है।
जब उसके पास उसकी इच्छा अनुरूप सभी साधन और सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं तो वह बैठा सोचता है कि उसके पास आ
अमरकंटक (छत्तीसगढ़)। प्रसिद्ध दार्शनिक व तपस्वी जैन संत शिरोमणिश्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा है कि सांसारिक वैभव अस्थिर व अस्थायी होता है। यह एक पल में प्राप्त और अगले ही पल समाप्त हो सकता है। यही संसार की लीला है। इसलिए यह वैभव प्राप्त होने पर भी कभी संतोष का त्याग नहीं करें और न ही अहंकार को पास में फटकने दें।
आचार्यश्री ने बताया कि सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों ही लक्ष्यों पर ध्यान रखते हुए यह भी सदैव याद रखें कि लक्ष्य को प्राप्त करने का रास्ता कठिनाइयोंभरा है। यह याद रखने से तो
लोभ के कारण अपने कुटुम्बियों की और अपनी भी चिन्ता नहीं करता उन्हें भी कष्ट देता है और अपने शरीर को भी कष्ट देता है। साधक के दर्षन बडे़ पुण्य से मिलते हैं, महत्व समझ में आ जाये तो महत्व हीन पदार्थ छूट जायेगा। परिणामों की विचित्रता होती है। निरीहता दुर्लभता से होती है। परिग्रह कम करते जाओ निरीहता बढ़ाते जाओ। जिसको हीरे की किमत मालूम है वह तुरंत नहीं बेचता है। जो लोभ कषाय से रहित है उसके शरीर पर मुकुट आदि परिग्रह होने पर भी पाप नहीं होता अर्थात् सारवान् द्रव्य का सम्बन्ध भी लोभ के अभाव में बन्ध का
परमपूज्य जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागरजी महाराज ने रामटेक स्थित भगवान श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र में उद्बोधन दिया है कि, गाय जीवित धन माना जाता है जो विभिन्न प्रकार की समस्याओ का हल करता है। काली गाय मनुष्य से भी ज्यादा जागृत रहती है। उसकी ज्यादा मांग रहती है। वातावरण शांत रहता है। मथुरा में गोवर्धन नगर है उधर की गायों में विशेषता है।
यदि कोई व्यक्ति गौ वध करता था तो पहले के शासक उसके हाथ अलग करवा देते थे। उस समय 4 लाख गायें थी, आज कितनी गायें है हमारे देश में ? अब कोई आवाज ही
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने जैन मंदिर परिसर हबीबगंज में आयोजित धर्मसभा में कहा कि संसार में आधी व्याधि रोग ,मानसिक रोग ,बौद्धिक रोग हर प्रकार के रोग हैं और उनकी चिकित्सा भी है ।जब आप भगवान को अर्घ समर्पित करते हो तो उसके अर्थ पर भी ध्यान दिया करो ।आप बोलते हैं क्षुधा रोग विनाशनाय परंतु आपकी क्षुधा हर पल बढ़ती ही जाती है ,शांत ही नहीं होती है ।अपने रोगों को लेकर आप संतों के पास भी जाते हो संतों के पास आपके तन की नहीं मन की ओषधि होती है और ये ओषधि आपको पूर्ण रूप से निरोगी कर देती है ।
पुज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि सर्वांगीण विकास में बुद्धि और शरीर दोनों का विकास समाहित होता है। किसी भी अच्छे कार्य की यदि नींव रखी जाती है तो नीचे से लेकर ऊपर तक एक ही दीवार बनायीं जाती है उस पर छत डाली जाती है। बाँध पर भी पानी रोका जाता था उसके लिए पूर्ण प्रबंध किया जाता है उसे निकलने की व्यवस्था की जाती है और नहर के माध्यम से अनेक राज्यों में जाता है। भाखड़ा नंगल बांध में ऐंसी व्यवस्था है उसका उद्देश्य परिग्रह नहीं होता बल्कि कृषि का विकास हो इसके लिये होता है। आप भी यदि संग्
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि आज कृषि के क्षेत्र में हम जिस यूरिया का प्रयोग कर रहे हैं वह हमारी कृषि को कमजोर तो बना ही रहा है साथ ही हमारे स्वास्थ्य को भी नुक्सान पहुंचा रहा है। सरकार भी इस और ध्यान नहीं दे रही है ,सरकार आप स्वयं बनो और इस तरफ आप खुद ही ध्यान दो। सरकार विज्ञापन के माध्यम से बातें तो बहुत सी करती है परंतु सही दिशा की और सार्थक कदम नहीं उठा ती है। आज अपने बच्चों को हमें स्वयं ही सही शिक्षा का ज्ञान कराने की जरूरत है क्योंकि यदि भारत का भविष्य उज्जवल और सुरक्षि
मंच संचालक चंद्रकांत जैन ने बताया कि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के सानिध्य में विश्व अहिंसा दिवस मनाया गया वैसे भी देखा जाये तो महात्मा गांधी जी का जन्म भी अक्टूबर में हुआ और आचार्य श्री विद्यासागर जी का भी जन्म अक्टूबर में हुआ । दोनों महापुरूषों ने अहिंसा का शंखनाद किया। आचार्य श्री के आशीर्वाद , प्रेरणा एवं उपदेश से पूरे भारत में लगभग 100 गौशालायें चल रही है । हिंसा को मिटाने के लिये अहिंसा का प्रचार आवश्यक है। आचार्य श्री के हृदय में बहुत अनुकम्पा, दया है। वह प्रवचन में गाय की रक्ष
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि संयोग से ही नियोग होता है और फिर वियोग भी होता है। जीवन में दुःख और सुख दोनों बराबर आते रहते हैं न तो दुःख में घबराना चाहिए न सुख में इतराना चाहिए बल्कि हमेशा समता का भाव धारण करना चाहिए। जब भी आप संतों की शरण में जाओ अपना रोना लेकर मत जाओ बल्कि प्रसन्नता को लेकर जाओ।
उन्होंने कहा कि सौधर्म जैंसे बैभवशाली व्यक्ति के जीवन में भी संयोग और वियोग के क्षण आते हैं आप सब तो मनुष्य का दुर्लभ भव पाकर पुण्यशाली हो जो आपको वीतरागी परमात्मा की भक्त
गुरुवर ने कहा कि सम्यक दर्शन की भूमिका में परिणामों की स्थिति बदलती है। नारकीय जीवन बहुत ही बदतर होता है, फिर भी सम्यक दर्शन की स्थिति बन जाती है। नार्कियों की अपेक्षा हमें अपनी स्थिति वेहतर बनाना है इसलिए उनके जीवन के बारे में जानना जरूरी है। प्रधानमंत्री का जीवन भी बहुत ही अनुशासन से बंधा होता है उन्हें आहार विहार और व्यवहार का ध्यान रखना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि सब अपनी वेदनाओं को लेकर व्यथित हो जाते हैं परंतु जब नारकीय जीवन को जानेंगे तो शायद अपनी व्यथा आपको छोटी लगने लगेगी। नरक
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा कि सम्यक दर्शन की उत्पत्ति में अनेक कारण होते हैं हरेक गति में धर्म श्रवण होता है, नरक में भी देवलोग जाकर नार्कियों को संबोधित करते हैं। 16 स्वर्ग वाले शुक्ल लेश्या वाले देवों के नीचे वाले देव जाते हैं। अधोगति में अपने ढंग की कषाय अलग होती हैं बहुत तीव्र होती है फिर भी सम्यक दर्शन उन्हें होता है। यदि आप दुसरे से सत्य बुलवाना चाहते हो तो आपको भी सत्य को अंगीकार करना होगा। वात्सल्य चाहते हो तो अपने ह्रदय को वात्सल्य से भरना होगा। अधोल
सागर से ढाई हजार लोगों ने श्रीफल भेंट कर चातुर्मास का किया निवेदन
सागर/ प्रसिद्ध जैन तीर्थक्षेत्र पपौराजी में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को सागर से ढाई हजार श्रावको ने सामूहिक रुप से आचार्यश्री से सागर में चातुर्मास हेतु निवेदन करते हुए श्रीफल समर्पित किया
सागर समाज की तरफ से मुकेश जैन ढाना ने कहा कि 1998 के बाद से सागर में आचार्य संघ का वर्षा कालीन चातुर्मास नहीं हुआ है। सागर में चतुर्मुखी जिनालय का का निर्माण कार्य चल रहा है आपके चातुर्मास से इस कार्य में और तेजी आएगी
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की प्रवचन यहाँ पंडाल में बैठे लोगों के लिए भी है और जो किसी माध्यम से इसे समझ रहे हैं उनके लिए भी है। आचार्य श्री ने एक दृष्टान्त के माध्यम से समझाया की एक बार एक जंगली सुवर गुफा के बाहर बैठ कर समायक कर रहा होता है और वहाँ एक सिंह आ जाता है तो जंगली सुवर सिंह को आगे जाने के लिए मना करता है तो इस पर जंगल के राजा सिंह को गुस्सा आ जाता है और इसी बात को लेकर दोनों में युद्ध शुरू हो जाता है। सिंह अपने पंजे से वार क
आचार्य श्री ने कहा कि सत्य है कटु है सुनने में अच्छा न।हीं लगता, आँखें सत्य को देखना नहीं चाहती परंतु उसे सुनना, देखना और सहन करना पड़ता है ये सत्य है। पाठ्यक्रम को सरसरी निगाह से नहीं देख पाते परंतु उसका चिंतन करना पड़ता है। आज को प्रवचन में उद्घठित हो रहा है बो पुराना है परंतु बार बार सुनने में अच्छा लगता है। इस कथा के माध्यम से ये बता रहा हूँ जब तूफ़ान आता है तो बृक्ष के पत्ते, डाली, फल सभी टूट कर गिर जाते हैं परंतु तना मजबूत होता है वो टिका रहता है। पाठ्यक्रम में जो आया है उसे स्वीकार करना पड़ता
पूज्य गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा की सत्य क्या है, संसार की कल्पनाएं असत्य हुआ करती हैं , द्रव्य का लक्षण सत्य होता है । स्वप्न जो साकार होते हैं उनका पूर्वाभास माहनआत्माओं को हो जाता है । 16 स्वप्न माता को दिखाई देते हैं और तीर्थंकर के आगमन का आभास हो जाता है । उनके आने के पूर्व ही भोर का उदय हो जाता है एक आभा सूर्य के आभाव में भी सत्य का प्रकाश बिखेरती है । महापुरुष के जीवन में भी इसी प्रकार की सत्य की आभा फूटने लग जाती है ,ऐंसा सत्य का प्रभाव होता है। ऐंसे ह
मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016]
कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें।
उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी
मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016]
कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें।
उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी
मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016]
कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें।
उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी