Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • entries
    108
  • comments
    3
  • views
    23,505

Contributors to this blog

About this blog

Entries in this blog

क्रोध - संस्मरण क्रमांक 33

☀☀ संस्मरण क्रमांक 33☀☀            ? क्रोध ?  प्रतिकूल परिस्थितियों में आने वाले आवे का नाम क्रोध है, क्रोध एक ऐसा विकारी भाव है जो हमारे तन मन और धर्म सभी को दूषित करता है, यह एक खतरनाक बीमारी है और हमेशा से चली आ रही है एवं व्यापक भी है इसलिए यह बीमारी नहीं लगती।  दूसरों की गलती पर कॉल करने का अर्थ है-दूसरों की गलती की सजा स्वयं को देना।  कुछ लोगों का लोगों का कहना है कि- क्रोध मैं नहीं करता कर्म का उदय आता है,इसका समाधान देते हुए, आचार्य श्री जी ने कहा कि-कर्म कभी क्रोध नहीं करता, क

अंतर्बोध - संस्मरण क्रमांक 32

☀☀ संस्मरण क्रमांक 32☀☀            ? अंतर्बोध ? उस दिन शाम का समय था । आचार्य महाराज मन्दिर के बाहर खुली दालान में विराजे थे। थोड़ी देर तत्व-चर्चा होती रही। उस पवित्र और शान्त वातावरण में आचार्य महाराज का सामीप्य पाकर सभी बहुत खुश थे। फिर सामायिक का समय हो गया। आचार्य महाराज वह से उठकर भीतर मन्दिर में चले गए । बाहर किसी ने मुझसे कहा कि  भीतर भी बिजली जला आओ। आचार्य श्री ने यह बात सुन ली । मैंने जैसे ही भीतर कदम रखा कि भीतर से वे बोल उठे - " हाँ भाई, भीतर की बिजली जला लो।"  उनका आशय आन्तरिक

वीतरागता - संस्मरण क्रमांक 31

☀☀ संस्मरण क्रमांक 31☀☀            ? वीतरागता ? यह बात उस समय कि है जब आचार्य महाराज भोपाल में झिरनों के मन्दिर में  दर्शन करने गए थे। बहुत प्राचीन खड़गासन प्रतिमाजी के दर्शन किये। वहाँ एक सज्जन ने पूछा-आचार्यश्री जी यह कौनसे भगवान है ? ,आचार्यश्री जी बोले - कौन से भगवान है ! भगवान है बस इतना ही जानो । सज्जन पुनः बोले- चिह्न तो देखो इस प्रतिमा में स्पष्ट नहीं है  !  तब आचार्य गुरुदेव ने कहा कि बस वीतरागता ही इनका चिह्न है। ? दिशाबोध पुस्तक से साभार? ? मुनि श्री कुन्थुसागर जी महाराज

अध्यात्म - संस्मरण क्रमांक 30

☀☀ संस्मरण क्रमांक 30☀☀            ? अध्यात्म ? एक बार आचार्य श्री ने बताया कि आप लोगों (मुनिराजों) की रत्नत्रय की गाड़ी है। इसमें रत्न भरे है, अध्यात्म इस गाड़ी की स्टरीग है। मोक्ष की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु को अध्यात्म की ओर दृष्टि रखना चाहिए। अध्यात्म को भी भूलना नही चाहिए । अध्यात्म स्टेरिग की भांति है जैसे गाड़ी में स्टेरिग होती है जहाँ ,जब चाहो उसे स्टेरिग के मध्यम से मोड़ सकते हो, ऑक्सीडेन्ट (दुर्घटना) से बच सकते हो।वैसे ही मोक्ष मार्ग में बढ़ने वाले साधक को अध्यात्म स्टेरिंग की भांति है,

सात्विक धंधा - संस्मरण क्रमांक 29

☀☀ संस्मरण क्रमांक 29☀☀            ? सात्विक धंधा ? सर्वोदय तीर्थ अमरकंटक में श्रावकाचार की कक्षा में श्रावक को किस प्रकार से आजीविका चलना चाहिए । गुरुदेव ने बतलाते हुए कहा की आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज जी ने बताया था की एक सेठजी थे वे अहिंसा धर्म मे बड़ी ही निष्ठा रखते थे। उन्होंने अपने पुत्र से कह दिया था कि तुम कपड़े की दुकान खोल सकते हो, लेकिन कपड़े की फैक्ट्री(मिल) नही खोल सकते क्योंकि उसमें हिंसा होती है। और सोने, चांदी, हीरे, जवाहरात की दुकान खोल सकते हो लेकिन खदान में ठेका नही ले सकते ह

अहिंसा का आयतन - संस्मरण क्रमांक 28

☀☀ संस्मरण क्रमांक 28☀☀            ? अहिंसा का आयतन ? किसी सज्जन के आचार्य गुरुदेव से कहा साधुओं को गौशाला खुलवाले की प्रेरणा नही देनी चाहिए उसमें हिंसा होती है। उन्हें तो आत्म ध्यान करना चाहिए। यह सुनकर आचार्य श्री ने कहा गौशाला में हिंसा नही होती, साक्षात दया पलती है, करुणा के दर्शन होते है, गौशाला भी आयतन है, "अहिंसा का आयतन"। सम्यकदर्शन में अनुकम्पा गुण कहा है वह गौशाला में पशुओं के संरक्षण से प्रयोग में आता है। यह सक्रिय सम्यकदर्शन माना जाता है। बच्चों को पालना मोह है, किन्तु पशुओं को प

त्याग की भावना - संस्मरण क्रमांक 27

☀☀ संस्मरण क्रमांक 27☀☀            ? त्याग की भावना ? *ठंड के दिन थे। दिन ढलने से पहले आचार्य महाराज संघ-सहित बण्डा ग्राम पहुँचे। रात्रि-विश्राम के लिए मंदिर के ऊपर एक कमरे में सारा संघ ठहरा। कमरे का छप्पर लगभग टूटा था। खिड़कियाँ भी खूब थी और दरवाजा काँच के अभाव से खुला ना खुला बराबर ही था। जैसे-जैसे रात अधिक हुई , ठंड भी बड़ गई। सभी साधुओं के पास मात्र एक-एक चटाई थी। घास किसी ने ली नही थी। सारी रात बैठे-बैठे ही गुजर गई । सुबह हुई, आचार्य वंदना के बाद आचार्य महाराज ने मुस्कुराते हुए पूछा की रा

उपाधि - संस्मरण क्रमांक 26

☀☀ संस्मरण क्रमांक 26☀☀            ? उपाधि ? सागर में आचार्य महाराज के सानिध्य में पहली बार षट्खंडागम वाचन-शिविर आयोजित हुआ। सभी के खूब रुचि ली। लगभग सभी वयोवृद्ध औऱ मर्मज्ञ विद्वान आए। जिन महान ग्रन्थों को आज तक दूर से ही माथा झुकाकर अपनी श्रद्धा सभी ने व्यक्त की थी , आज उन पवित्र ग्रथों को छूने ,देखने, पढ़ने और सुनने का सौभाग्य मिला। यह जीवन की अपूर्व उपलब्धि थी। वाचना की समापन  बेला में सभी विद्वानों के परामर्श से नगर में प्रतिष्ठित एवं प्रबुद्ध नागरिकों के एक प्रतिनिधि मंडल ने आचार्य मह

निरंतर प्रयास - संस्मरण क्रमांक 25

☀☀ संस्मरण क्रमांक 25☀☀            ? निरंतर प्रयास ? जबलपुर से मुक्तागिरी की ओर आचार्य महाराज का विहार हुआ।  मुलताई के आस-पास रास्ते में एक दिन बहुत तेज बारिश आ गई,थोड़ी देर पानी बरसता रहा फिर थक गया,  महाराज मुस्कुराए और आगे बढ़ते-बढ़ते बोले-"भाई इतनी जल्दी थक कर थम गए, हम तो अभी नहीं थके"  उनका इशारा बादलों की ओर था सभी हंसने लगे। आचार्य महाराज ने इस तरह चलते-चलते एक संदेश दे दिया कि कितनी भी बारिश आये, धूप हो या ठंड लगे,मोक्षार्थी को बिना थके शांत भाव से अपने मोक्षमार्ग पर निरंतर आगे

अनुग्रह - संस्मरण क्रमांक 24

☀☀ संस्मरण क्रमांक 24☀☀            ? अनुग्रह ?        नैनागिरि में आचार्य महाराज के तीसरे चातुर्मास की स्थापना से पूर्व की बात है।सारा संघ जल-मन्दिर में ठहरा हुआ था।वर्षा अभी शुरू नहीं हुई थी।गर्मी बहुत थी।एक दिन जल मन्दिर के बाहर रात्रि के अन्तिम प्रहर में सामायिक के समय एक जहरीले कीड़े ने मुझे दंश लिया।बहुत वेदना हुई।सामायिक ठीक से नहीं कर सका।आचार्य महाराज समीप ही थे और शान्त भाव से सब देख रहे थे।जैसे-तैसे सुबह हुई।वेदना कम हो गई।हमने आचार्य महाराज के चरणों में निवेदन किया कि वेदना अधिक

अनुकम्पा - संस्मरण क्रमांक 23

☀☀ संस्मरण क्रमांक 23☀☀            ? अनुकम्पा ?        सागर से विहार करके आचार्य महाराज संघ-सहित नैनागिरि आ गए।वर्षाकाल निकट था,पर अभी बारिश आई नहीं थी।पानी के अभाव में गाँव के लोग दुखी थे।एक दिन सुबह-सुबह जैसे ही आचार्य महाराज शौच-क्रिया के लिए मन्दिर से बाहर आए,हमने देखा कि गाँव के सरपंच ने आकर अत्यंत श्रद्धा के साथ उनके चरणों में अपना माथा रख दिया और विनत भाव से बुन्देलखण्डी भाषा में कहा कि "हजूर ! आप खों चार मईना इतई रेने हैं और पानू ई साल अब लों नई बरसों,सो किरपा करो,पानू जरूर चानें

दृढ़ चरित्र - संस्मरण क्रमांक 22

☀☀ संस्मरण क्रमांक 22☀☀            ? दृढ़ चरित्र ?  आचार्य भगवन भविष्य में दृढ़ चारित्र का पालन करेंगे, चरित्र को अपने जीवन की अंतिम श्वासों तक बहुत अच्छे से अपनाएंगे, इसका पता पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी को बहुत पहले चल चुका था बात उस समय कि है जब आचार्य भगवन ब्रम्हचारी अवस्था मे थे, जब ब्रह्मचारी विद्याधर जी मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज के सानिध्य में केशलोंच कर रहे थे, उस समय प्रत्येक बाल खींचतें समय खून निकल रहा था, उस दृश्य को देखकर वहां पर उपस्थित क्षुल्लक श्री आदिसागर जी ने मुनिवर

आत्मबोध - संस्मरण क्रमांक 21

☀☀ संस्मरण क्रमांक 21☀☀            ? आत्मबोध ? मुक्तागिरी का चातुर्मास सानंद संपन्न हुआ, आचार्य महाराज संघ सहित रामटेक होते हुए बालाघाट पहुंचे।सुबह संघ सहित शौच क्रिया के लिए जंगल की ओर गए। वहां वन-विभाग के ऑफिसर के बंगले पर दो शेर के बच्चे खेलते हुए दिखे सारा संघ  क्षणभर को वहां ठहर गया।वन विभाग के ऑफिसर ने उन बच्चों के मिलने की जानकारी दी। आचार्य महाराज सारी बातें चुपचाप सुनते रहे, फिर सहसा बोले कि- हे वनराज जैसे देश काल की परिस्थिति आज तुम वन के स्थान पर भवन में रह रहे हो ऐसे ही वनों में

परीक्षा - संस्मरण क्रमांक 20

☀☀ संस्मरण क्रमांक 20☀☀            ? परीक्षा ?   चातुर्मास स्थापना का समय था, क्षुल्लक सुमति सागर जी की मुनि बनने की बड़ी भावना थी,साधना भी थी पर वृद्ध हो गए थे, आचार्य महाराज ने उनकी भावना के अनुरुप उन्हें मुनि दीक्षा दे दी। और वह मुनि वैराग्य सागर हो गए। दो-तीन माह तक उन्होंने महाव्रतों का बड़ी सावधानी से पालन किया, जीवन का अंत निकट जानकर और वृद्धावस्था का विचार करके आचार्य महाराज से सल्लेखना ग्रहण कर ली। मुनि की आहार चर्या सर्वोत्कृष्ट है, स्वस्थ व  अस्वस्थ हर दशा में समताभाव रखकर निर्

अनुशासन - संस्मरण क्रमांक 19

☀☀ संस्मरण क्रमांक 19☀☀            ? अनुशासन ? मैंने सुना है एक दिन रात्रि के समय जब लोग आचार्य महाराज की सेवा में व्यस्त थे,तब किसी की ठोकर लगने से तेल की शीशी गिर गई।शीशी का ढक्कन खुला था, तो तेल भी फैल गया।  सभी थोड़ा घबराये ,पर आचार्य महाराज मुस्कुराते रहे,सुबह आचार्य वंदना के बाद आचार्य महाराज चर्चा करते-करते बोले की देखो- शिष्य और शीशी दोनों में डांट लगाना कितना जरूरी है जैसे शीशी में डाट(ढक्कन )ना लगा हो तो उसमें रखी कीमती चीज गिर जाती है, ऐसे ही शिष्य को डांट (अनुशासन के लिए कठोरता

वीतरागी से अनुराग - संस्मरण क्रमांक 18

☀☀ संस्मरण क्रमांक 18☀☀            ? वीतरागी से अनुराग ?  आचार्य महाराज संग सहित  विहार कर रहे थे, खुरई नगर में प्रवेश होने वाला था ,एक गरीब सा दिखने वाला व्यक्ति साइकिल पर अपनी आजीविका का बोझ लिए समीप से निकला और थोड़ी दूर जाकर ठहर गया,जैसे हीआचार्य महाराज उसके सामने से निकले वह भाव विह्वल होकर उनके श्री चरणों में गिर पड़ा।गदगद कंठ से बोला कि-" भगवान राम की जय हो"आचार्य महाराज ने क्षण भर उसे देखा और अत्यंत करुणा से भर कर धर्म वृद्धि का आशीष दिया,और आगे बढ़ गए। वह व्यक्ति हर्ष विभोर होकर बह

दृष्टि लक्ष्य की और - संस्मरण क्रमांक 17

☀☀ संस्मरण क्रमांक 17☀☀            ? दृष्टि लक्ष्य की और ?  एक बार एक साधक के दांत में छेद हो गया, जिस से तकलीफ बनी रहती,आहार के समय और तकलीफ बढ़ जाती डॉक्टर को दिखाया उस दिन उनका उपवास था, डॉक्टर ने उसको निकाल दिया बहुत खून गिरा,  जब आचार्य श्री जी को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने पूछा क्यों,उन्हें दांत से बहुत खून आया मैंने (कुंथुसागर जी)कहा -जी आचार्य श्री जी डॉक्टर ने ऊपर गाल पर बर्फ रखा, वह ठंडा लगा उस ओर ध्यान गया कि झटके से दांत निकाल दिया मालूम ही नहीं पड़ा दांत कब निकल गया,यह सब उपयो

मुक्ति - संस्मरण क्रमांक 16

☀☀ संस्मरण क्रमांक 16☀☀            ? मुक्ति ? मुक्तागिरी 1980 वर्षाकाल पूरा होने को था,दीपावली की पूर्व संध्या में आचार्य महाराज ध्यानस्थ हुए तो सारी रात निश्चल ध्यान में बैठे-बैठे ही बीत गई। महावीर स्वामी के परिनिर्वाण की प्रत्युष बेला में उन्होंने आंखें खोली और क्षणभर हम सभी की ओर देख कर कहा कि-  भगवान तो वर्षों पहले मुक्त हो गए हम भी ऐसे ही कभी मुक्त होंगे पर जाने कब होंगे उस क्षण उनकी दिगंत में झांकती आंखें मुख्य मंडल पर छाई अपार शांति और गदगद कंठ से झरती यह अमृतवाणी देख- सुनकर हम सभी

विनम्र श्रद्धा - संस्मरण क्रमांक 15

☀☀ संस्मरण क्रमांक 15☀☀            ? विनम्र श्रद्धा ?   एक बार की बात है सिवनी के बड़े मंदिर में पूज्य आचार्य भगवान विराजमान थे,वयोवृध्द पंडित सुमेर चंद जी दिवाकर उनके दर्शन करने आए,तत्व चर्चा चलती रही, जाते समय पंडित जी बोले कि-  महाराज हमें तो आचार्य शांति सागर जी महाराज ने एक बार मंत्र जपने के लिए माला दी थी, जो अभी तक हमारे पास है।  पंडित जी का आशय था कि-आप भी हमें कुछ दें,पर आचार्य भगवन तत्काल बोले कि - पंडित जी हमें तो हमारे आचार्य महाराज *(ज्ञानसागर जी)मालामाल कर गए हैं। माला की ल

संयमी जीवन - संस्मरण क्रमांक 14

??????????    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 14☀☀            ? संयमी जीवन?  आज पंचमकाल में कैसी भौतिकता है,चारों तरफ वासनाओं का वास हो चुका है, और ऐसे समय में एक अकेला संत जो संयम की रक्षा करते हुए संतत्व से सिध्दत्व की यात्रा करते हुए, मोक्ष मार्ग की ओर निरंतर बिना रुके आगे बढ़ता जा रहा है वह यात्रा जो स्वयं ने अकेले शुरू की थी आज वह यात्रा अविरल रूप से प्रवाहमान है और लाखो हजारों लोग उस  यात्रा में शामिल होकर मोक्ष मार्ग की ओर निरंतर गमन कर रहे हैं लाखों लोगों की मन की सिर्फ एक ही इच्छा होती है कि

प्रथम दर्शन की अनुभूति - संस्मरण क्रमांक 13

☀☀ संस्मरण क्रमांक 13☀☀      ? प्रथम दर्शन की अनुभूति ?        घटना 1975 की है,एक दिन जब हम ब्र. सुरेन्द्रनाथ जी (पूर्व अधिष्ठाता ईशरी आश्रम) से श्री समयसार जी का अध्ययन कर रहे थे,तब ही अचानक वे बोल उठे कि छीपीटोला,आगरा में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज पधारे हुये है।दोपहर 2 बजे उनके दर्शन करने चलेंगे। ठीक 2 बजे हम छीपीटोला, आगरा पहुँच गये। धर्मशाला के प्रथम तले पर एक कमरे में पू. आचार्य विद्यासागर जी महाराज अकेले स्वाध्याय में तल्लीन विराजमान थे। ब्र. सुरेन्द्रनाथ जी तथा में उनको नमोस

सतर्क मुनि चर्या - संस्मरण क्रमांक 12

??????????  ? सुनो भाई खुशियां मनाओ रे                      आयी संयम स्वर्ण जयंती?   ??????????    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 12☀☀            ? सतर्क मुनि चर्या ? आचार्य श्री विद्यासागर जी संघ सहित विहार करके एक गांव में पहुंचे। लंबा विहार होने से उन्हें थकावट अधिक हो गई।कुछ मुनि महाराज वैयावृत्ति कर रहे थे।सामायिक का समय होने वाला था,अचानक आचार्य श्री बोले - मन कहता है शरीर को थोड़ा विश्राम दिया जाए .......सभी शिष्यों ने एक स्वर में आचार्य श्री जी की बात का समर्थन करते हुए कहा-हां हां आचार्

सतर्क मुनि चर्या - संस्मरण क्रमांक 11

☀☀ संस्मरण क्रमांक 11☀☀            ? सतर्क मुनि चर्या ? आचार्य श्री विद्यासागर जी संघ सहित विहार करके एक गांव में पहुंचे। लंबा विहार होने से उन्हें थकावट अधिक हो गई।कुछ मुनि महाराज वैयावृत्ति कर रहे थे।सामायिक का समय होने वाला था,अचानक आचार्य श्री बोले - मन कहता है शरीर को थोड़ा विश्राम दिया जाए .......सभी शिष्यों ने एक स्वर में आचार्य श्री जी की बात का समर्थन करते हुए कहा-हां हां आचार्य श्री जी आप थोड़ा विश्राम कर लीजिए आचार्य श्री जी हंसने लगे और तत्काल बोले मन भले ही विश्राम की बात कर

अंतिम लक्ष्य सिद्धि - संस्मरण क्रमांक 10

??????????  ? सुनो भाई खुशियां मनाओ रे                      आयी संयम स्वर्ण जयंती?   ??????????    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 10☀☀            ? अंतिम लक्ष्य सिद्धि ?  अपने गुरु के समान ही आचार्य श्री विद्यासागर जी भी जीवन का अंतिम लक्ष्य समाधि मरणकी सिद्धि हेतु कृतसंकल्प है। इसका स्पष्ट चित्रण संघस्थ ज्येष्ठ साधु मुनि श्री योग सागर जी की आचार्य श्री जी से हुई चर्चा से स्पष्ट हो जाता है  आचार्य श्री विद्यासागर जी का भोपाल मध्यप्रदेश चातुर्मास सन 2016 के बाद डोंगरगढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़

सच्चा रास्ता - संस्मरण क्रमांक 9

??????????  ? सुनो भाई खुशियां मनाओ रे                      आयी संयम स्वर्ण जयंती?   ??????????     ☀☀ संस्मरण क्रमांक 9☀☀            ? सच्चा रास्ता ? 1978  नैनागिरी चातुर्मासमें जयपुर से कुछ लोग आचार्य महाराज के दर्शन करने नैनागिरी आ रहे थे, वह रास्ता भूल गए और नैनागिरी के समीप दूसरे रास्ते पर मुड़ गए। थोड़ी देर जाकर उन्हें एहसास हुआ कि वह भटक गए हैं , इस बीच 4 बंदूकधारी लोगों ने उन्हें घेर लिया,  गाड़ी में बैठे सभी यात्री घबरा गए एक यात्री ने थोड़ा साहस करके कहा कि - भैया ह
×
×
  • Create New...