भावना योग
तन को स्वस्थ, मन को मस्त
और आत्मा को पवित्र बनाने का
अभिनव प्रयोग
तन को स्वस्थ, मन को मस्त और आत्मा को पवित्र बनाने का अभिनव प्रयोग है “भावना योग”। “यद्भाव्यते तद् भवति (हम जैसी भावना भाते हैं वैसा होता है) की प्राचीन उक्ति पर आधारित इस योग को वर्तमान में लॉ ऑफ अट्रेक्शन के रूप में जाना जाता है। आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार हम जैसा सोचते हैं वैसे संस्कार हमारे अवचेतन मन पर पड़ जाते हैं वे ही प्रकट होकर हमारे भावी जीवन को नियंत्रित और निर्धारित करते हैं
मंगल-भावना मंगल-मंगल होय जगत् में, सब मंगलमय होय। इस धरती के हर प्राणी का, मन मंगलमय होय।। कहीं क्लेश का लेश रहे ना, दु:ख कहीं भी ना होय। मन में चिंता भय न सतावे, रोग-शोक नहीं होय।। नहीं वैर अभिमान हो मन में, क्षोभ कभी नहीं होय। मैत्री प्रेम का भाव रहे नित, मन मंगलमय…
पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर महाराज की मंगल प्रेरणा व आशीर्वाद से भावना योग शिविर का आयोजन दिनांक 31 मई से 2 जून तक श्री दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र सिद्धवरकूट में आयोजित हुआ। शिविर के दौरान हुए भावना योग की विडियो नीचे संकलित हैं।
भावना योग का महत्व जैन साधना में जो ध्यान है वह चित्त की एकाग्रता का नाम है और वहां तो यह कहा गया कि यदि तुम ध्यान की गहराई में डूबना चाहते हो तो ‘तुम कोई भी चेष्टा मत करो, कुछ बोलो मत, कुछ सोचो मत, आत्मा को आत्मा में स्थिर रखो; यही परम ध्यान…
भावना योग का महत्व जैन साधना में जो ध्यान है वह चित्त की एकाग्रता का नाम है और वहां तो यह कहा गया कि यदि तुम ध्यान की गहराई में डूबना चाहते हो तो ‘तुम कोई भी चेष्टा मत करो, कुछ बोलो मत, कुछ सोचो मत, आत्मा को आत्मा में स्थिर रखो; यही परम ध्यान…