जहाँ बड़ों का विनय न कुछ भी और न अपनी लघुताई।
कोट बूट पतलून हैट हो और गले में हो टाई॥ १२१॥
खटिया से उठते ही टी हो, फिर मुँह में आवे सिगरेट।
भगवन्नाम चीज क्या होता गुडमोर्निग जहाँ हो भेट॥
रोटी खाई फुरसत पाई ताम गज्जफा करने को।
एक दूसरे के अवगुण कह आपस में लड़ मरने को॥१२२॥
कहा गया यदि कहीं कि बेटे कुछ धन्धा भी देखों ना?
नहीं समूचा समय चाहिये खेलकूद में ही खोना॥
तो जवाब मिलता है चट से अब तो तुम जीवित हो ना?
मर जावोगे तो देखेंगे पहले ही से क
ब्रह्मचर्य पूर्वक गुरु सेवा करके शिक्षा पाते थे।
गुरुजन भी शिष्यों को सुत कहकर निःशुल्क पढ़ते थे॥१२९॥
आज्ञाकारी हो गुरु के चरणों में शीश झुकाते थे।
बनकर शिष्य हृदय उनका यों वे सब कुछ पा जाते थे॥
लोकोपकारार्थ ही होता था उनका विद्या पढ़ना।
उदरपूर्ति के सवाल को तो कभी नहीं उस पर मंढना॥१३०॥
हन्त आज हो चली जीविका-साधन विद्यायें सारी।
इसीलिए परमार्थ भावना दूर गई वह बेचारी॥
बिना वृत्ति के अध्यापक-जन नहीं पढ़ाना ही जाने।
वहाँ छात्रगण उन्हें क्यों नहीं अपना ही नौकर मानें॥१३१॥
विप्र क्षत्रिय वैश्य सभी की दृष्टि नौकरी पर आई।
फिर हम किसको दास कहें यों कौन रहे भू पर साई॥
नूतन शिक्षे परिहृतदी' तू क्यों भारत में आई।
पढ़ो बालको करो नौकरी यह फैशन है अपनाई॥१३२॥
और नहीं कुछ काम एक सी ए टी कैट पढ़ा देना।
अपना घण्टा पर पूरा यों झट पट फीस झा
सम्यक्त्वादिक आठ गुणों की स्मृति में आठे पूर्व कहा।
गुणस्थान मार्गणा स्मरण को, लेकर चतुर्दशी च महा॥
सभी तरह का धन्धा तजकर अतः वहाँ अनशन करना।
परमात्म स्मृति पूर्वक अपनी मनोमालिनता को हरना॥१७६॥
तीनों संध्याओं में निश्चल चित्ततया भगवान भजे।
सब जीवों में समता धरकर आर्त रौद्र परिणाम तजे।
पहले बन पड़ जाने वाले दुष्कृत्यों पर पछताना॥
आगे को न कभी करने की मनोभावना को माना ॥१७७॥
पाँचों अणुव्रतों को दूषित कभी नहीं होने देना।
पाँच तरह के अनर्थ दण्डों की न कभी जागे सेना॥
पंचेन्द्रिय के वश में होकर कभी न दुर्यश को लेना।
ऐसा शील भवोदधि में संवरमय दृढ़ नौका खेना ॥१७८॥
गेही से त्यागी का जीवन भिन्न जाति का होता है।
वह होता आराम तलब वह तो विवेक को ढोता है॥
गेही मखमल के गद्दे युत पलंग ऊपर सोता है।
त्यागी गुरु के चरणों में भूपर रजनी को खोता है॥१७९॥
गेही तेल फुलेल लगा कर खुशबू से खुश होता है।
त्यागी रुग्ण मुनिजनों के मल-मूत्र यथोचित धोता है॥
गेही नाटक और सिनेमा देखा करता खड़े-खड़े।
त्यागी की तो नजर धूसरित गुरु चरणों पर सहज पड़े॥१८०॥
मृगनयनी के मुँह से ठुमरी दादरादि को सुनता है।
तो मस्त हुआ गेही मस्ती से मस्तक
२३ जून २०१८, कैलिफ़ोर्निया, अमेरिका.
लगभग ४५० लोगों ने कार्यक्रम में आकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराईऔर सभी का उत्साह देखते बना
आचार्यश्री के जीवन पर आधारित वृत्तचित्र(डॉक्यूमेंटरी फिल्म) ने सबका मन मोह लिया! बच्चों का नाटक "विद्याधार से विद्यासागर" हिंदी भाषा में किया गया, उन बच्चों द्वारा जो सिर्फ अंग्रेजी ही जानते हैं और हिंदी पढ़ भी नहीं पाते!
आचार्य श्री के चित्र और विभिन्न प्रकल्प की झांकी लगायी गई | महिलाओं का नृत्य और गरबा भी हुआ
शुद्ध भोजन, चाय और शाम के भोजन की पूरी
पुरस्कार ? From @Ghar ghar dharmik likhawat
हथकरघा की चादर(1)
हथकरघा का योगा मैट(1)
हथकरघा का हैण्ङ बैग(3)
@Dr. Aayushi Jain
@Shravak Jain@ajain9103@gmail.com @PRAYAG JAIN @Jyoti Kolhapure
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नहीं शत्रु से भर जरा भी नहीं मित्र भी स्नेह मही।
जीना मरना एक सरीखा यतिपन में समदाम सही ॥१८८॥
अपनी निन्दा में न मलिनता और न खुशी बड़ाई में।
ऐसी क्षमता भेद न कुछ भी सेवक में या सांई में॥
इस दुनियाँ में जड़ चेतन चीजों का जो कुछ डेरा है।
मैं हूँ ज्ञाता दृष्टा केवल और न कुछ भी मेरा है ॥१८९॥
यह शरीर भी भिन्न चीज है जिसमें लिया बसेरा है।
सदा अरूपी चेतन मैं यह रूपादिक का डेरा है।।
और सभी तो भिन्न धरा धन-धाम पुत्र सोदार दारा।
आदिक दीख रहे हैं देखो इनमें क्या मेरा न्यारा ॥१९०॥
रहे अकिञ्चनपन को यों अपना कर यह चेतन प्यारा।
दूर हटे इसके दिल पर से दुःखद राग रोष सारा॥
यों अपने में आप आपको पाकर आत्मा राम बने।
पराधीनता रूप दीनता को पलभर में क्यों न हने ॥१९१॥
इसके लिए प्रथम तो जिनवर-वाणी गंगा में गोता।
इस भोले शरीरधारी को बार-बार लेना होता॥
ऐसा करने से इसका मानस हो जाता है गीला।
चिरकालीन कर्म-बंधन भी जिससे हो रहता ढीला ॥१९२॥
दूर हटाई जा सकती आसानी से अघमाया है।
फिर तो इसको विज्ञवरों ने यों स्वाध्याय बताया है॥
स्वाध्याय प्रसाद से यदि जो मन में अडोलता आई।
वहीं ज्ञानभूषणताकर सद्ध्यान कहा जाता भाई ॥१९३॥
॥ इति शुभम्॥
*‼आहारचर्या‼*
*❗पपोरा जी❗*
_दिनाँक :२५/०६/१८ *आगम की पर्याय महाश्रमण युगशिरोमणि १०८ आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज* को आहार दान *श्रीमान ऋषभ कुमार जी जैन मिर्जापुर एवं उनके परिवार वालो* को प्राप्त हुआ है।_
इनके पूण्य की अनुमोदना करते है।
????
*भक्त के घर भगवान आ गये*
*_सूचना प्रदाता-:विनय सुनवहा जी जैन टीकमगढ़_*
???
*अंकुश जैन बहेरिया
*प्रशांत जैन सानोधा
*‼आहारचर्या‼*
*❗पपोरा जी❗*
_दिनाँक :२४/०६/१८ *आगम की पर्याय महाश्रमण युगशिरोमणि १०८ आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज* को आहार दान *श्रीमान जितेंद्र जी जैन रामगढ़ टीकमगढ़ एवं उनके परिवार वालो* को प्राप्त हुआ है।_
इनके पूण्य की अनुमोदना करते है।
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*भक्त के घर भगवान आ गये*
*_सूचना प्रदाता-:विनय सुनवहा जी जैन टीकमगढ़_*
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*अंकुश जैन बहेरिया
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whatsaap विजेता - @Ashish Singhalआपको पुरस्कार स्वरूप प्रदान की जा रही हैं - हथकरघा निर्मित श्रमदान ब्रांड की हाफ शर्ट
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*विद्योदय विशेष सूचना*
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आप यह सूचना इस लिंक पर ज़रूर डालें ताकि कोई भी भक्त सूचना न मिलने के कारण वंचित न रह जाये |
स्थान का नाम नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें ताकि इसकी सूची बनाकर सभी तक पहुँचाई जा सके और सभी यह फिल्म देख सकें।
स्थान सूचि
जयपुर
ग्वालियर
*‼आहारचर्या‼*
*❗पपोरा जी❗*
_दिनाँक :२३/०६/१८ *आगम की पर्याय महाश्रमण युगशिरोमणि १०८ आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज* को आहार दान *श्रीमान मनोज जी जैन टीकमगढ़ एवं उनके परिवार वालो* को प्राप्त हुआ है।_
इनके पूण्य की अनुमोदना करते है।
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*भक्त के घर भगवान आ गये*
*_सूचना प्रदाता-:विनय सुनवहा जी जैन टीकमगढ़_*
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*अंकुश जैन बहेरिया
*प्रशांत जैन सानोधा
@किरण कुमार उमाठे @Vinni Jain @Vibbo @SIDDESH JAIN @अभिलाषा जैन आप सभी को उपहार स्वरुप मिल रहा हैं हथकरघा निर्मित योगा मैट |
आपको आपके उपहार आपसे संपर्क कर के शीघ्र भेजे जायेंगे |
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