☀☀ संस्मरण क्रमांक 11☀☀
? सतर्क मुनि चर्या ?
आचार्य श्री विद्यासागर जी संघ सहित विहार करके एक गांव में पहुंचे।
लंबा विहार होने से उन्हें थकावट अधिक हो गई।कुछ मुनि महाराज वैयावृत्ति कर रहे थे।सामायिक का समय होने वाला था,अचानक आचार्य श्री बोले - मन कहता है शरीर को थोड़ा विश्राम दिया जाए .......सभी शिष्यों ने एक स्वर में आचार्य श्री जी की बात का समर्थन करते हुए कहा-हां हां आचार्य श्री जी आप थोड़ा विश्राम कर लीजिए
आचार्य श्री जी हंसने लगे और तत्काल बोले मन भले ही विश्राम की बात कर
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? सुनो भाई खुशियां मनाओ रे
आयी संयम स्वर्ण जयंती?
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☀☀ संस्मरण क्रमांक 10☀☀
? अंतिम लक्ष्य सिद्धि ?
अपने गुरु के समान ही आचार्य श्री विद्यासागर जी भी जीवन का अंतिम लक्ष्य समाधि मरणकी सिद्धि हेतु कृतसंकल्प है। इसका स्पष्ट चित्रण संघस्थ ज्येष्ठ साधु मुनि श्री योग सागर जी की आचार्य श्री जी से हुई चर्चा से स्पष्ट हो जाता है
आचार्य श्री विद्यासागर जी का भोपाल मध्यप्रदेश चातुर्मास सन 2016 के बाद डोंगरगढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़
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? सुनो भाई खुशियां मनाओ रे
आयी संयम स्वर्ण जयंती?
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☀☀ संस्मरण क्रमांक 9☀☀
? सच्चा रास्ता ?
1978 नैनागिरी चातुर्मासमें जयपुर से कुछ लोग आचार्य महाराज के दर्शन करने नैनागिरी आ रहे थे, वह रास्ता भूल गए और नैनागिरी के समीप दूसरे रास्ते पर मुड़ गए। थोड़ी देर जाकर उन्हें एहसास हुआ कि वह भटक गए हैं , इस बीच 4 बंदूकधारी लोगों ने उन्हें घेर लिया, गाड़ी में बैठे सभी यात्री घबरा गए एक यात्री ने थोड़ा साहस करके कहा कि - भैया ह
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☀☀ संस्मरण क्रमांक 8☀☀
? अभयदान?
चातुर्मास स्थापना का समय समीप आ गया था, सभी की भावना थी कि इस बार आचार्य महाराज नैनागिरी में ही वर्षाकाल व्यतीत करें,वैसे
नैनागिरी के आसपास डाकुओं का भय बना रहता है, पर लोगों को विश्वास था कि आचार्य महाराज के रहने से सब काम निर्भयता से सानंद संपन्न होंगे सभी की भावना साकार हुई चातुर्मास की स्थापना हो गई।
एक दिन हमेशा की तरह है जब आसान महाराज आहारचर्या से लौटकर पर्वत की ओर जा रहे थे तब रास्ते में समीप की जंगल से निकलकर
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☀☀ संस्मरण क्रमांक 7☀☀
? चेतन धन ?
प्रवचन के पूर्व किसी सज्जन ने दान के बारे में अपनी बात रखी।हंसी के तौर पर उनने कहा - बुंदेलखंड के लोग बड़े कंजूस है ये दान नही देते।
यह सुनकर आचार्य गुरुदेव मन ही मन मुस्कुराने लगे और मंद मंद मुस्कान उनके चेहरे पर आ गयी , तो सभी सभा मे बैठे श्रद्धालु गण हँसने लगे।
आचार्य महाराज ने प्रवचन के समय कहा - अभी एक सज्जन कह रहे थे कि ये बुन्देलखण्ड के लोग धन का त्याग नही करते। देखो ( मंचासीन सभी मुनिराजों की और अ
??? संस्मरण क्रमांक 6 ???
?? पेट्रोल ??
किसी सज्जन ने आचार्यश्री जी से शंका व्यक्त करते हुए कहा कि-कुछ लोग व्रत लेकर छोड़ देते है या उनके व्रतों में शिथिलता आ जाती है। ऐसा किस कारण से होता है ? तब आचार्य श्री जी ने कहा कि- मुख्य कारण तो इसमें चारित्र मोहनीय का उदय रहता है दूसरा स्वयं की पुरुषार्थ हीनता भी काम करती है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए समझाया कि जैसे कोई व्यक्ति मोटरसाइकिल शोरूम पर जाकर उत्साह के साथ बढ़िया कम्पनी की एक मोटरसाइकिल बड़े उत्साह के साथ खरीदकर लाता है। उसमें थोड़ा-स
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??? संस्मरण क्रमांक 5 ???
?? आदर्श ग्रहस्थ ??
आचार्यश्रीजी गृहस्थ धर्म की व्याख्या कर रहे थे उन्होंने बताया कि - गृहस्थ रागी जरुर होता है,किंतु वीतरागी का उपासक अवश्य होता है।सच्चा श्रावक हमेशा देव,शास्त्र व गुरु पर समर्पित रहता है। देव पूजा आदि छः आवश्यकों का प्रतिदिन पालन करता है। पर्व के दिनों में एकाशन करता हुआ ब्रह्मचर्य का पालन करता है।जिसके माध्यम से संकल्पी हिंसा होती हो ऐसा व्यापार नहीं करता। उसका आजीविका का साधन न्याय-संगत एवं सात्विक होता है। वह विवाह भी करता
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??? संस्मरण क्रमांक 4 ???
आचार्य श्री का एक बहुत अच्छा संस्मरण है कुछ तथाकथित विद्वान यह कहते हुए पाये जाते है कि पंचम काल में यहाँ से किसी को मुक्ति नहीं मिलती इसलिए हम अभी मुनि नहीं बनते बल्कि विदेह क्षेत्र में जाकर मुनि बनेंगे इस प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य श्री जी ने कहा कि-जो व्यक्ति यहाँ मुनि न बनकर विदेह क्षेत्र में जाकर मुनि बनने की बात करते है,वे ऐसे खिलाड़ी की तरह हैं जो अपने गाँव की पिच पर मैच नहीं खेल पाते एवं कहते है मैं तो विदेश में मैच खेलूंगा या सीध
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??? संस्मरण क्रमांक 3 ??? गुरु होकर भी लघु बने रहना
एक बार भोपाल में आचार्य श्री जी के दर्शन करके अत्यंत भावविभोर होकर किसी भक्त ने कह दिया कि- पंचम काल की काया पर चतुर्थ काल की आत्मा।
जिसे सुनकर आचार्य श्री जी ने कहा कि- आप कह सही रहे हो , पर एक सुधार करना है कि पंचम काल की तो काया है , पर अनंत काल की आत्मा ये आत्मा अनादि काल से संसार मे भटक रही है , फिर आप कैसे कह सकते है कि चतुर्थ काल की आत्मा
लोगो को सुनकर आश्चर्य हुआ और सभी गुरुजी के प्रति समर्पण भाव से भर गए ।
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??? संस्मरण क्रमांक 2 ???
पूज्यमुनिश्री क्षमासागर जी महाराज का अपने गुरु आचार्यश्री विद्यासागर जी के प्रति अनूठा समर्पण था। उनका जीवन मानो अपने गुरुकी ही धारा में बहता था... साये की तरह आचार्य श्री के पदचिन्हों पर चलते समय उनके जीवन से जुड़े अनेक संस्मरणों को मुनिश्री ने अपनी पुस्तक आत्मान्वेषी में संकलित किया...प्रस्तुत है संस्मरण
"आत्मीयता"शीतकाल में सारा संघ अतिशय क्षेत्र बीना-बारहा(देवरी) में साधनारतरहा। आचार्य महाराज के निर्देशानुसार सभी ने खुली दालान में रहकर मूलाचार व
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??? संस्मरण क्रमांक 1???
हमने (आ.श्री विद्यासागर जी ने ) एक बार आ.ज्ञानसागर महाराजजी से पूछा था - ' महाराज ! मुझसे धर्म की प्रभावना कैसे बन सकेगी ? तब उनका उत्तर था कि ' आर्षमार्ग में दोष लगा देना अप्रभावना कहलाती है । तुम ऐसी अप्रभावना से बचते रहना, बस प्रभावना हो जाऐगी ।
❄❄" मुनि मार्ग सफेद चादर के समान है, उसमें जरा सा दाग लगना अप्रभावनाका कारण है । उनकी यह सीख बड़ी पैनी है । इसलिए मेरा प्रयास यही रहा कि दुनिया कुछ भी कहे या न कहे, मुझे अपने ग्रहण किये हुए व्रतों का परिपालन
चन्द्रगिरि (डोंगरगढ़) में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि पहले असी, मसि, कृषि, वाणिज्य के हिसाब से कार्य होता था और विवाह में कन्यादान होता था। इस प्रथा में कन्या दी जाती थी। इसमें कन्या का आदान-प्रदान नहीं होता था।
आज पाश्चात्य सभ्यता का चलन होने के कारण सब प्रथाओं में परिवर्तन आ रहे हैं, यह विचारणीय है। पहले पिता अपनी बच्ची के लिए योग्य वर ढूंढता था, पर आज बच्चे से पूछे बिना कोई काम नहीं कर सकते हैं। पहले बच्ची अपने पिता की बात को ही अपना भाग्य समझती थी, अ
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने मोह, राग और द्वेष की परिभाषा बताते हुए कहा की मोह हमें किसी भी वस्तु या मनुष्य आदि से हो सकता है जैसे दूध में एक बार जामन मिलाने पर वह जम जाता है फिर दोबारा उसी बर्तन पर दूध डालने पर दूध अपने आप जम जाता है उसमे दोबारा जामन नहीं डालना पड़ता।
उसी प्रकार मनुष्य भी मोह में जम जाता है। राग और मोह में अंतर होता है। राग के कारण वस्तु का वास्तविक स्वरुप न दिखकर उसका उल्टा स्वरुप दिखने लगता है। जैसे कोई वस्तु है, यदि आ
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की प्रवचन यहाँ पंडाल में बैठे लोगों के लिए भी है और जो किसी माध्यम से इसे समझ रहे हैं उनके लिए भी है। आचार्य श्री ने एक दृष्टान्त के माध्यम से समझाया की एक बार एक जंगली सुवर गुफा के बाहर बैठ कर समायक कर रहा होता है और वहाँ एक सिंह आ जाता है तो जंगली सुवर सिंह को आगे जाने के लिए मना करता है तो इस पर जंगल के राजा सिंह को गुस्सा आ जाता है और इसी बात को लेकर दोनों में युद्ध शुरू हो जाता है। सिंह अपने पंजे से वार क
आचार्य श्री विद्यासागर जी का ५०वाँ दीक्षा दिवस मनेगा पूर्ण उत्साह के साथ
Todays Mumbai Times of India News article regarding celebrations of the 50th diksha year and various programmes being conducted
आज प्रातः ८० से अधिक ब्रह्मचारी भैया लोगों ने दीक्षा के निवेदन के साथ गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के श्री चरणों में श्रीफल समर्पित किए और सभी ब्रह्मचारी भाइयों को पाद प्रक्षालन का सौभाग्य प्राप्त हुआ । गुरूदेव की मुखमुद्रा देखकर ऐसी संभावना लग रही है कि दीक्षा प्रदाता पूज्य गुरुदेव दीक्षा देकर अपने शिष्यों को कृतार्थ करेंगे।
तत्पश्चात् ब्र संजीव भैया कटंगी ब्रहमचारी मनोज भैया, ब्रहमचारी दीपक भैया ने पूज्य गुरुदेव की संगीतमय पूजा संपन्न करवाई
· दीक्षा के 50 वर्ष पूरे होने का पर्व संयम स्वर्ण महोत्सव के रूप पूरे एक वर्ष तक चलेगा।
· मातृभाषा में शिक्षा और हथकरघा के माध्यम से स्वदेशी क्रांति का आरम्भ
· ऐसे संत जो प्रतिपल जनहित, राष्ट्रहित और भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए सोचते हैं
रायपुर : दिगंबर जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की दीक्षा के 50 वर्ष सन 2018 में पूर्ण हो रहे हैं इस पावन पर्व को देश-विदेश में “संयम स्वर्ण महोत्सव” के रूप में मनाया जाएगा जो बुधवार, 28 जून 2017 से आरंभ हो र
हाईस्कूल के बाद लिया था सन्यास, कठिन तप-साधना से बने आचार्य
जबलपुर। आचार्य विद्यासार जी को देश-दुनिया के लोग जानते हैं। उनके संघर्ष और तप से पूरी दुनिया प्रभावित है। मंगलवार को वे जबलपुर आए तो हजारों की संख्या में श्रावक उनके दर्शन के लिए पहुंच गए। ऐसे में हम यहां आचार्य श्री के जीवन से जुड़ी जानकारी साझा कर रहे हैं।
आचार्य विद्यासागर जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946, शरद पूर्णिमा को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा ग्राम में हुआ था। उनके पिता मल्लप्पा व मां श्री मति ने उनका नाम विद्या
मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016]
कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें।
उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी
मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016]
कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें।
उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी