सुगमपथ वीतराग मार्गी आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में नमोस्तु-नमोस्तु- नमोस्तु....हे हितचिंतक गुरुवर! जन्म- जन्मांतरों से प्राणी मित्र विद्याधर स्वयं किसी जीव की हिंसा नहीं करते और ना ही परिवार जनों को करने देते थे। इस संबंध में विद्याधर के अग्रज भ्राता(महावीर प्रसाद जी)ने बताया-
विद्याधर घर वालों को मच्छर भगाने के लिए धुआं नहीं करने देता था, और खटमल मारने की दवाई भी नहीं छिड़कने देता था- "कि इससे जीव हिंसा होगी, पाप लगेगा, वो भी तो जीना चाहते हैं।" तब उसको हम लोग कहते- व
ध्वनि न करो,
गति(मती) धीमी हो,निजी,
और ओंरों की |
हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
आओ करे हायकू स्वाध्याय
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डोंगरगांव पंचकल्याणक महोत्सव, पात्र चयन का आयोजन शुरू।
अब तक चयनित पात्रों की सूची-
● मूल नायक पुण्यार्जक-
श्रेष्ठि श्री सुनील जैन सुजीत कुमार जैन डोंगरगांव।
● भगवान के माता-पिता बनने बाले सौभाग्यशाली-
श्रेष्ठि श्री सुजीत जी ममता जैन।, डोंगरगांव।
● सौधर्म इंद्र बनने के सौभाग्यशाली-
श्रेष्ठि श्री संदीप जैन डोंगरगांव।
● कुबेर इंद्र-
श्रेष्ठि श्री प्रशांत जैन डोंगरगांव।
● भगवान पार्श्वनाथ प्रतिमा पुण्यार्जक
श्रेष्ठि श्री प्रवीण जैन अरुण जैन अनिल जैन सुनील जैन
ज्ञानेंद्र गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को शत-शत नमन करता हूं.....
हे वात्सल्य रत्नाकर गुरुवर एक महापुरुष के अंदर सहज स्वाभाविक असीम गुणों के भंडार से समय-समय पर गुणरत्न प्रकट होते रहते हैं और उस विराट व्यक्तित्व को चमकातेे रहते हैं। विद्याधर में एक तरफ वैराग्य की ऊर्जा वृद्धिंगत हो रही थी तो दूसरी तरफ व्यावहारिक गुण भी अपनी सुगंधी फैलाते जा रहे थे। परिवार के सदस्यों से उसे गहरा लगाव था, वे प्रत्येक सदस्य का बड़ा ही ख्याल रखते थे। उसकी संवेदनाएं महापुरुषत्व की आधारशिलाएं स्थापित कर रही थ
?? डोंगरगांव में पंचकल्याणक महोत्सव की तैयारियां जोरों पर??
जगत गुरु
आचार्य परमेष्ठी गुरुदेव श्री 108 विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार रामटेक महाराष्ट्र से होकर सम्भवता डोंगरगांव छत्तीसगढ़ (लगभग 200 किलोमीटर) की ओर चल रहा हैं!
❄ छतीसगढ़ की पावन धरा पर संस्कारधानी धर्मनगरी डोंगरगांव में नवनिर्मित अजितनाथ जिनायल जिसमे चौबीसी की मनोहारी वेदी शिखरावली के साथ विशाल मानस्तम्भ का प्राण प्रतिष्ठा पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव का कार्यक्रम 09 नवम्बर से 15 नवम्बर तक अयोध्यानगरी जेंट्स क्लब मैद
राजनांदगांव/डोंगरगांव. दिगबर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी का डोंगरगांव प्रवेश शनिवार को सुबह 8 बजे होगा। अपने मुनिसंघ के साथ पद यात्रा कर डोंगरगांव पहुंच रहे आचार्यों की आगवानी के लिए डोंगरगांव शहर की सीमा पर मोहड़ चौक से विशाल जन समुदाय के साथ उनका डोंगरगांव प्रवेश होगा। डोंगरगांव में नवनिर्मित जैन मंदिर में मूर्ति स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा सहित मंदिर प्रांगण में निर्मित मान स्तंभ पूजन और गजरथ पंचकल्याण महोत्सव के वृहद कार्यक्रम जैनाचार्य श्री विद्यासागरजी के उपस्थिति में होगा।
शनिवार सु
ब्रह्मांड ज्ञान ऊर्जा धारक गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज आपके ज्ञानाचरण को नमन करता हूं...... हे गुरुवर! दया अहिंसा की मां है दया ही अहिंसा में परिणत होती है। विद्याधर सहज उत्पन्न दया के भंडार थे।यही कारण है कि विद्याधर की शुद्ध दया ही अहिंसा महाव्रत में परिणत हुई।
इस संबंध में मुनि योग सागर जी महाराज ने बताया- जेसे दूध में घी तैरता है वैसे ही भव्य पुरुष के हृदय में दया स्वाभाविक रूप से तैरती हुई नजर आती है। दया-अहिंसा,परोपकार को जन्म देती है योगियों की योग्यता का मापदंड दया है बच
सदेह में विदेह भोक्ता गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को मेरा कोटि कोटि वंदन......
हे गुरुवर!आज मैं आपको वह घटना याद करा रहा हूं जिससे आप कुछ विचलित सेे हुए थे किंतु विद्याधर जी के जवाब से आपके हर्षाश्रु आ गए थे, जिसे आप सहजता से छुपा दिए थे और रात भर आशीर्वाद देते रहे होंगे तो लाडले ब्रह्मचारी सुबह हंसते हुए मिले थे, जिसको किशनगढ़ के वो लोग आज तक नहीं भूले। जो उसके साक्षी थे। इस संबंध में शांतिलाल गोधा जी(आवड़ा वाले) मदनगंज किशनगढ़ से लिखते हैं-
"सन 1967 मदनगंज किशनगढ़ चातुर्मास के दौरान
"अप्रैल 1968 नसीराबाद में हम लोग ज्ञानसागर जी महाराज की वैयावृत्ति के लिए रात में जाते थे।" तब समाज के कुछ लोग भजन सुनाते थे, विद्याधर जी को एक भजन बहुत अच्छा लगा वह मेरे पिताजी नेमीचंद जी गदिया से प्रतिदिन वहीं भजन सुनाने के लिए कहते थे, और स्वयं भी साथ साथ मधुर वाणी में बोलते थे। उनकी मधुर वाणी में भजन सुनकर हम युवा बड़े प्रभावित हुए, वह भजन हम लोगों ने तैयार कर लिया फिर मुनि दीक्षा के बाद सन 1972 में आए और जून 1973 तक रहे तब कई बार वह भजन हम लोगों ने उन्हें सुनाया वह इस प्रकार है-
लय- रिम
एक बार की बात है सदलगा के पास में निप्पाणी शहर है, वहां चलने के लिए विद्याधर ने मुझसे(महावीर प्रसाद जी) कहा- तब मैंने पूछा क्यों जाना ? तो बोला- "वहां पर आचार्य विनोबा भावे जी भाषण देने के लिए आ रहे हैं मुझको उनके भाषण सुनना है वह देश के लिए और देश के गरीबों के लिए बहुत अच्छा काम करते हैं अच्छा भाषण देते हैं इसलिए हमको उनका भाषण सुनना चाहिए। "तब हम दोनों पिताजी के पास गए और बोले हम लोगों को विनोबा भावे जी का भाषण सुनना है। तब पिताजी ने समझाते हुए ऊंचे स्वर में कहा- वह भूदान के लिए भाषण देने आ रह
जब गुरु ज्ञान सागर जी महाराज हमारे यहाँ दादिया ग्राम में प्रवास कर रहे थे, तब ज्ञान सागर जी महाराज आहार की पश्चात धूप में थोड़ी देर बैठते थे। उस वक्त समाज के लोग ब्रह्मचारी विद्याधर जी के भजन बोलने के लिए कहते थे। किंतु विद्याधर जी मौन बैठे रहते थे। फिर गुरुवर ज्ञान सागर जी महाराज की स्वीकृति पाकर भजन बोलते थे। बड़ी ही मीठी आवाज में भजन गाते थे। रोज नया भजन सुनाते थे, इस कारण बालक-युवा-महिलाऐं सब लोग गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज की आहार के पश्चात मन्दिर जी में एकत्रित हो जाते थे और भजन सुनते थे। ए
आचार्य श्री जी के जीवन में बचपन से ही जीवों के प्रति करुणा भाव कूट - कूट भरा हुआ है।उनके जीवन की प्रत्येक क्रिया करुणा से ओत-प्रोत है, हर क्रिया में करुणा झलकती है। वे करूणा के भंडार है, करुणा की मूर्ति है। आचार्य भगवन के अंदर करुणा और दया को देखकर मन उनके प्रति श्रद्धा से भरकर प्रफुल्लित हो जाता है। 17 नवंबर 1972 (नैनागिर) की बात है- बारह वर्ष से धर्मशाला के निकट एक कुत्ता रहता था।उसने खाद्य पदार्थ समझकर के एक दिन अग्निगोलक अस्त्र (बम) खा लिया। उसका विस्फोट हो जाने से उसका मुख क्षत-विक्षत हो गय
ब्यावर के पश्च्यात १९७४ में आचार्य श्री ने अजमेर में चातुर्मास किया। आचार्य श्री दिव्य पुरुष है, प्रत्येक चातुर्मास में ऐसी घटनाएँ घटित होती है , जो इतिहास का अंग बन जाती हैं आचार्यश्री प्रातः कालीन प्रतिक्रमण कर बैठे थे। भक्तो से चर्चा कर रहे थे। महाराष्ट्र अकलुज से एक युवा डॉक्टर चुन्नीलाल एम. बी. बी. एस. भी आचार्य श्री के दर्शन को आए थे। आचार्य श्री की आध्यत्मिक साधना और ज्ञान से प्रभावित होकर आध्यत्मिक-चर्चा करते रहते थे। एक दिन चर्चा के पश्चात आचार्य श्री की चरण रज लेने के लिए झुके तो उनकी
30 जुलाई 1968, श्री भागचंद सोनी जी की नशियाँ बात उस समय की है जब युवा ब्रह्मचारी विद्याधर की मुनि दीक्षा होनी थी। सबसे पहले ब्रह्मचारी विद्याधर ने मुनि ज्ञान सागर जी की चरण वंदना की, उसके बाद मुनि श्री से दिगंबर दीक्षा प्रदान करने हेतु प्रार्थना की। मुनि श्री ने दीक्षा पूर्व जनसमूह के समक्ष अपनी भावनाएं प्रस्तुत करने हेतु विद्याधर को निर्देश दिया।मुनि श्री की अनुमति पाकर विद्याधर ने सिद्धम नम:, सिद्धम नम: के पवित्र उच्चारण के पश्चात आदि तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रशस्ति में मंगलाचरण का उच्चारण किया,पश
आचार्य संघ का विहार चूलगिरी से श्रवणबेलगोल के लिए निर्विघ्न चल रहा था। विद्याधर कहार बने डोली उठा रहे थे श्रवणबेलगोल के निकट यात्री दल पहुँचा। सर्पीली पहाड़ियां, दुर्गम चढ़ाई, देवदारुओं का सघन वन, दूर दूर तक कोई बस्ती नहीं। कहार हाँफने लगे हय्या हय्या करने लगे। युवा विद्याधर के कंठ से एक मधुर गीत झरने लगा
अर्हत् राम, रमैया
हैया हो रे, हैया
मेरे अर्हत् पावन हैं
करुणा के वे सावन है
जन्म मृत्यु के दोनों तट से
पार लगाते नैया
अर्हत् राम, रमैया
उस समय सारा संघ नेमावर में साधनारत था । गर्मी का समय था, रात्रि में 12 बजे तक गरम हवा चलती थी। रात्रि में नींद नही ले पाते थे। कुछ महाराजो ने आचार्य महाराज से निवेदन किया कि- हम लोग नदी में जाकर रेत में रात्रि विश्राम करने के लिए चले जाया करेंगे। तब आचार्य महाराज ने कहा- ठीक है, जाओ नदी में रेत भी है और वहाँ श्मशान भी है दो चार महाराज हो जाओ ठीक रहेगा। कुछ सोचकर बोले - अगर रात्रि विश्राम के लिए वहाँ जा रहे हो तो मेरा आशीर्वाद नही है बल्कि साधना करने जा रहे हो तो मेरा आशीर्वाद है।
आचार्य मह
महापुरुषों की जन्म तपस्या एवं निर्वाण स्थली रहे धर्म प्रधान भारत देश की पहचान आध्यात्मिकता है और अहिंसा, त्याग आदि इसकी विशिष्टता है। प्रत्येक युग में युगदृष्टाओ ने यहां जन्म लेकर तप साधना के आदर्श प्रस्तुत किए हैं। ऐसे महापुरुषों के व्यक्तित्व एवं सत्कार्य प्रकाश स्तंभ के समान युगों युगों तक जन जन के जीवन को प्रेरणा के स्रोत के रूप में प्रकाशित करते रहते हैं। उनकी अमर जीवन गाथाएं स्वर्णाक्षरों में लिखी जाने योग्य हैं। वर्तमान युग में ऐसे ही आदर्श महापुरुष हैं विश्वविख्यात महान तपस्वी महाकवि दिग
गर्मी का समय था,उन दिनों में मेरी शारीरिक अस्वस्थता बनी रहती थी। मैं आचार्य महाराज के पास गया और मैंने अपनी समस्या निवेदित करते हुए कहा- आचार्य श्री जी! पेट में दर्द(जलन) हो रहा है। आचार्य महाराज ने कहा-गर्मी बहुत पड़ रही है, गर्मी के कारण ऐसा होता है और तुम्हारा कल अंतराय हो गया था,इसलिए पानी की कमी हो गई होगी सो पेट में जलन हो रही है। कुछ रुककर गंभीर स्वर में बोले कि-क्या करें यह शरीर हमेशा सुविधा ही चाहता है लेकिन इस मोक्षमार्ग में शरीर की और मन की मनमानी नहीं चल सकती। बाहरी दु:ख के प्रति अचेत
गुरु जी का उपदेश चल रहा था, हम सभी साधक उस उपदेशामृत का पान कर रहे थे। आचार्य श्री ने बताया कि- समय अनुसार हमें कभी कठोर तो कभी मृदु चर्या के माध्यम से साधना विकास उन्मुखी बनाना चाहिए। लेकिन तेज सर्दी और तेज गर्मी में साधना करना बहुत मुश्किल है आज खुले में साधना करने वालों के दर्शन दुर्लभ है। तब मैंने कहा- आचार्य श्री जी मैंने सुना है पहले आप, जब राजस्थान में थे तब खुले में पहाड़, श्मशान आदि पर जाकर साधना करते थे यह सुनकर आचार्य श्री जी कुछ क्षण मौन रहे, फिर बोले - केकड़ी राजस्थान के पास बघेरा ग
बड़े महाराज की बातों में बड़ा यानि महान राज रहता है, बहुत बड़ा रहस्य छुपा होता है। उनकी वाणी से सूत्र वाक्य निकलते हैं। यदि उनका अर्थ लगाया जाए तो बहुत बड़ा उपदेश उस सूत्र वाक्य के माध्यम से प्राप्त हो जाता है जो बिखरे जीवन को एक नया आयाम दे सकता है। इस जीवन को सत्य की सुगंध से सुभाषित कर सकता है। संसार के वास्तविक स्वरूप का बोध प्रदान कर सकता है।
सर्दी का मौसम था, ठण्ड बहुत पड़ रही थी इस कारण से सभी लोग तेज धूप में ही बैठे हुए थे। लेकिन आचार्य महाराज वहीं छाँव में विराजमान थे। सभी लोगों
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के श्री मुख से बेटियों के बारे में कहा गया यह पौराणिक कथन हर पिता के भाग्य मे बेटी नहीं होती राजा दशरथ जब अपने चारों बेटों की बारात लेकर राजा जनक के द्वार पर पहुँचे तो राजा जनक ने सम्मानपूर्वक बारात का स्वागत किया। तभी दशरथ जी ने आगे बढकर जनक जी के चरण छू लिये। चाॅककर जनक जी ने दशरथ जी को थाम लिया और बोले महाराज आप मुझसे बड़े है और तो और वरपक्ष वाले है ये उल्टी गंगा कैसे बहा रहे हैं .....?
इस पर दशरथ जी ने बड़ी सुंदर बात कही, महाराज आप दाता हो कन
आज का विज्ञान खोज की दिशा में बहुत आगे बढ़ गया हैं।लेकिन वह आज जड़ की ही खोज कर पाया है।उसने शरीर मे प्रत्येक नस-नस की खोज कर ली, कोई भी शरीर काअवयव उससे अछूता नहीं रह गया। लेकिन शरीर के अंदर आत्मा नाम की कोई वस्तु है या नहीं,इसके बारे में वह मौन है।उसे वह नहीं खोज पाया।मात्र जड़ पदार्थों को ही विषय बना पाया है,क्योंकि प्रत्येक जड़ पदार्थ में रूप,रस,गन्ध,वर्ण और स्पर्श पाया जाता है।लेकिन इन रूप, रस आदि से रहित उस आत्म तत्व को नहीं खोज पाया,क्योंकि वह इंद्रियों का विषय नहीं बनता।वह आत्म तत्व तो योगिग