प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {29 नवंबर 2017}
चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की गायें होती हैं, उसके गले में रस्सी डाली जाती है और वह जब जंगल आदि जगह चरने जाती हैं तो वह रस्सी उसके गले में ही रहती है और वह चरने के बाद अपने यथास्थान पर आ जाती हैं किन्तु बछड़े के गले में रस्सी नहीं होती है, वह अपनी माता (गाय) के इर्द – गिर्द ही घूमता रहता है और दौड़कर दूर भी निकल जाये तो गाय की आवाज के संपर्क में रहता है और भागकर
अब तक का सफर
(1) प्रस्तावना एक शिष्य दिन-रात, प्रतिपल यही मन में भावना भाता है कि- जिन सद्गुरु ने एक नया जीवन दिया, जो हर 1 श्वास में बसे हुए है, जो हृदय की धड़कन की तरह सदा इस दिल में धड़कते रहते है। जिन सद्गुरु ने रास्ते मे पड़े हुए इस कंकड़, पत्थर को उठाकर अपनी छत्रछ्या में रखकर इसे अच्छे संस्कारो से पल्लवित कर इसमें छुपी हुई अनन्त संभावनाओं को उजागर कर उसे एक हीरे का रूप दिया। इस कंकड़ पर अनन्त उपकार किये, जो वह अपने जीवन की अंतिम श्वासों तक स्मरण करेगा। कभी नहीं भूल पाएंगे, उन उपकारों को। इ
अविरल स्वभाव बोध में परिणमन कर असीमित रहस्य के समाधान प्राप्त गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के श्री चरणों में सम्पूर्ण विनय अर्पित करता हूं.... हे गुरुवर आपने ब्रह्मचारी विद्याधर को जितना दिया वो लेते गए, कुछ भी छोडना नहीं चाहते थे। इस कारण उन्होंने दृढ़ संकल्प कर रखा था कि रोज का होमवर्क रोज करके ही विश्राम करना एवं अपने संकल्प के पूरा करने में ऐसे दत्तचित्त रहते थे कि कोई भी बाधा उन्हें बाधा दे ही नहीं पाती थी। इस संबंध मे नसीराबाद के आपके भक्त कुंतीलाल जी गदिया ने ब्रह्मचारी विद्याधर जी के ब
आत्मानुशासित चर्या में केंद्रित गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में नमोस्तु - नमोस्तु - नमोस्तु..... हे गुरुवर! ब्रह्मचारी विद्याधर आपकी हर आज्ञा को पूर्ण श्रद्धा, भक्ति के साथ पालन करते थे। इस में किसी भी प्रकार का प्रमाद नहीं करते थे। गुरु आज्ञा को दृढ़ता के साथ पालन करने का यह संस्कार बचपन से ही आ गया था। बचपन में यह संस्कार कहां से मिला इसका समाधान चिंतन में यह आता है कि - पूर्व जन्म के संस्कार जाग्रत हुए हैं। आज्ञाकारिता के बारे में नसीराबाद मे आप के परम भक्त श्री शांतिलाल जी पाटनी न
सूक्ष्मातिसूक्ष्म संबोधनात्मक कल्पना शक्ति की धनि महाकवि गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में सीमातीत नमोस्तु..... हे गुरुवर! दक्षिण की त्यौहार हो या सामाजिक कोई कार्यक्रम या लोक संस्कृति का कोई उत्सव परिवार की सहभागिता में बालक विद्याधर सदा उत्साह के साथ बालोचित कार्य करके सभी की शाबाशी लेता था। इस संबंध में एक स्मृति आपकी लिख रहा हूं जो विद्याधर के अग्रज भाई महावीर जी ने बतलाई - दक्षिण के सभी लोग शरद पूर्णिमा के दिन अपने अपने खेतों पर जाते हैं और भूमि पूजन करते हैं। हम लोग भी प्रतिवर्ष
मदनगंज किशनगढ़ चातुर्मास में ब्रह्मचारी विद्याधर जी, पंडित श्री महेंद्र कुमार जी पाटनी शास्त्री जी से संस्कृत एवं हिंदी भाषा का ज्ञानार्जन करते थे। पंडित जी से उन्होंने कातंत्र रूपमाला (संस्कृत व्याकरण) धनंजय नाममाला (शब्द कोश) एवं श्रुतबोध (छंद रचना) इन 3 संस्कृत ग्रंथों को पढ़ा था। जितना वो पढ़ते थे उतना वह याद कर लेते थे और पंडित जी को सुनाते थे।
इसी प्रकार मदनगंज किशनगढ़ के शांतिलाल गोधा जी (आवड़ा वाले) ने लिखा- 1967 मदनगंज-किशनगढ़ के दिगंबर जैन चंद्रप्रभु मंदिर में ज्ञान सागर जी म
चंद्रगिरि में आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि शुक्ल पक्ष में चंद्रमा का आकार प्रतिदिन परिवर्तित होता है बढ़ता जाता है और पूर्णिमा के दिन उसकी ऊष्मा से समुद्र की लहरों में उछाल आ जाता है। ऐसे ही डोंगरगढ़वासियों के भावों में भगवान के समोशरण में आने से उत्साह, उल्लास नजर आ रहा है।
आचार्य ने कहा कि आगे कब भगवान के समवशरण देखने को मिलेगा पता नहीं परंतु पिछले 3 दिनों के विहार में भगवान के समवशरण की झलकियां देखने को मिली जो की अद्भुत थी। भगवान की यह प्रतिमा बहुत प्राचीन है और जैसे कुण्डलपु
प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {22 नवंबर 2017}
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि वृक्ष होता है जिसकी शाखाएं होती है उसमें से पहले कली खिलती है फिर फूल खिलता है फिर उसमें फल आता है। यह एक स्वतः होने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसी प्रकार यह प्रतिभास्थली है जिसमें ये छोटी-छोटी बच्चियां पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी ग्रहण कर रही हैं। आप लोगों की संख्या अभी कम है, आप संख्या की चिंता मत करो, आप अपना काम ईमानदारी से मन ल
विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {21 नवंबर 2017}
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की बिम्ब और प्रतिबिम्ब में अंतर होता है। बिम्ब किसी वस्तु का स्वाभाव व उसके गुण आदि होते हैं परन्तु उसका प्रतिबिम्ब अलग – अलग हो सकता है यह देखने वाले की दृष्टि पर निर्भर करता है की वह उस बिम्ब में क्या देखना चाह रहा है। यदि सामने कोई बिम्ब है और उसे दस लोग देख रहे होंगे तो सबके विचार उस प्रतिबिम्ब के प्रति अलग – अलग हो सकते हैं। किसी को कोई चीज अच्छी ल
प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {20 नवंबर 2017}
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की बांस काफी लम्बे होते हैं और ऊपर की ओर परस्पर तोरण द्वार की तरह लगते हैं। पंडित जी कहते हैं न की दोनों हांथों को ऊपर उठाओ और हांथ जोड़कर शिखर बनाकर जय कारा लगाओ उसी तरह बांस भी एक – दूसरे से जुड़े हुए रहते हैं, एक – दूसरे से गुथे हुए होते हैं। यदि कोई बांस को नीचे से काटे और खिचे तो उसे ऊपर से निकालना बहुत मुश्किल होता है क्यों
प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {19 नवंबर 2017}
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा का आकार प्रतिदिन परिवर्तित होता है बढ़ता जाता है और पूर्णिमा के दिन उसकी उषमा से समुद्र की लहरों में उछाल आ जाता है ऐसे ही डोंगरगढ़ वासियों के भावों में भगवान के शमोशरण आने से उत्साह, उल्लास नज़र आ रहा है।
आचार्य श्री ने कहा की आगे कब भगवान के समवशरण देखने को मिलेगा पता नहीं परन्तु पिछले 3 दिनों के विहार
अयाचक वृत्ति के धनी स्वाभिमानी गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों मे नमस्कार- नमस्कार- नमस्कार.... हे गुरुवर! ब्रम्हचारी विद्याधर जी आपको पूर्णतः समर्पित होकर, आपके समान बनने के लिए, आपकी हर क्रिया को अपने अन्दर आचरित करते जा रहे थे। सही मायने में वो आपकी पर्याय बन आप में मिलना चाह रहे थे। इस सम्बन्ध में नसीराबाद के आपके भक्त प्रवीणचन्द गदीया ने एक स्मृति सुनायी-
स्वाभिमानी ब्रम्हचारी विद्याधर
"नसीराबाद में प्रवास में हमारे घर पर चौक लगा करता था। जब जब परमपूज्य ज्ञानसागर जी महाराज
आत्मपरीक्षक, आत्मोत्तरदाता, आत्मसमालोचक, गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज की आत्मदृष्टि को कोटिशः प्रणाम करता हूं...हे गुरुवर! आपश्री ने दादिया ग्राम में ब्रम्हचारी विद्याधर जी की साधना की चार बार परीक्षा ली थी ओर ब्रम्हचारी जी उन परीक्षा में शतःप्रतिशत पास ही नही हुए बल्कि त्यागी विद्यार्थी के रूप में सब के आदर्श बन गए थे। इस बारे में दादिया के पारस झाँझरी सुपुत्र हरकचंद जी झाँझरी ने बताया।
प्रथम परीक्षा में परीक्षक हुए हक्के- बक्के
"दादिया प्रवास में ब्रम्हचारी विद्याधर जी बडी ही साधना
आत्माभा में लीन गुरु ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों मे सीमातीत वंदन... हे गुरुदेव! आपने ज्ञानपिपासु ब्रम्हचारी विद्याधर में जोज्ञान ज्योति प्रज्ज्वलित की। जिसे आज तक मेरे गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज दिन-रात जलाये रखते है। किसी को उपसर्ग-परिषह-संकटो को झंझावातो में बूझने नही देते है। यह संस्कार बचपन से ही विद्याधर को प्राप्त हुए थे। इस सम्बन्ध में विद्याधर की गृहस्थावस्था की बहने ब्रह्महचारिणी सुश्री शान्ता, सुश्री सुवर्णा जी जब अशोकनगर(म.प्र.) प्रवास में थी, तब संस्मरण लिखकर भेजा था।
डोंगर गांव विशेष सूचना
१५/११/२०१७, बुधवार
डोंगर गांव पञ्च कल्याणक प्रतिष्ठा के सम्पन्न होने के अवसर पर एक विशेष घोषणा की गई डोंगरगढ़ प्रतिभास्थली में प्रतिष्ठित होने वाली प्रतिमा जी जिसके पञ्च कल्याणक डोंगर गांव में संपन्न हुए उस प्रतिमा जी की भव्य शोभा यात्रा डोंगर गांव से डोंगरगढ़ तक निकाली जाएगी जिसमें आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ भी पद विहार करके डोंगरगढ़ जाएंगे
साथ में प्रतिष्ठा महोत्सव के सभी मुख्य पात्र एवं श्रावक भी कतार बद्ध तरीके से इस शोभा यात्रा में पद विहार करें
वेदिका पर विराजित हुए भगवान श्रीजी, शिखर पर हुआ कलश व ध्वजारोहण सी. एम. नहीं भक्त के रूप में आया हूूं: रमन डोंगरगांव |
आचार्य श्री विधासागर जी महाराज के पावन सानिध्य में चल रहे गजरथ पंचकल्याणक महोत्सव के अंतिम दिवस मोक्ष कल्याणक के साथ ही सात दिवसीय महामहोत्सव का समापन हो गया। बुधवार को नव निर्मित मंदिर की वेदिका भगवान श्रीजी विराजित करने शिखर पर कलश व ध्वजारोहण किया गया। शोभायात्रा के साथ भगवान श्रीजी को वेदिका पर विराजित कर ध्वजारोहण का कार्य हुआ। आयोजन के अंतिम दिवस मुख्यमंत्री डाॅ. रमन ने
अंधियारे भवारण्य के ज्ञानप्रकाश गुरुवार श्री ज्ञान सागर जी महाराज को त्रिकाल वंदन करता हूँ.... हे गुरुवर!आज में आपको आपके शिष्य, पाक कलाकार विद्याधर के बारे में बताता हूँ। इस सम्बन्ध में विद्याधर की बहने ब्रम्हचारिणी सुश्री शान्ता जी, सुश्री सुवर्णा जी ने प्रश्न का जवाब लिखकर भिजवाया पाक कलाकार विद्याधर "भोजन करना अलग बात है, भोजन बनाना अलग। जिसे पाक कला के नाम से जाना जाता है। पाक कला से संस्कृति का परिचय सहज हो जाता है। इस कला में महिलाएं निपुण होती है, किन्तु पुरषों का निपुण होना कला सज्ञा को
"माँ श्रीमन्ती ने हम दोनों पुत्रियों को ऐसी समज दी थी कि अभी तुम छोटी हो तुम्हसे उपवास नही हो सकता है। इसलिए एकासन किया करो। एकासन का मतलब एक बार सुबह भोजन करना और शाम को तला हुआ पदार्थ जैसे पूड़ी, बूंदी, लाडू, जलेबी आदि। छोटे बच्चों को सब को सब छूट होता है। माँ की ममता की झूठ समज को सच समझकर हम बच्चें वैसे ही एकासन करने लगे। हम लोगो की उम्र उस समय ९ और १२ वर्ष की थी। एक दिन भैया विद्याधर ने ऐसा करते हुए देख लिया तब कहा 'ऐसे भी कोई एकासन होता है क्या ? ऐसा तो मैं हमेशा कर सकता हूँ। एक बार भोजन कर
लोक-परलोक की ज्ञाता गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी के चरणो में नमन करता हूं.....हे गुरूवर! आज मैं आपको विद्याधर के शौक के बारे में बताता हूं। युवा जवान को देखकर सहज ही उत्कंठा हो जाती है कि इसकी कैसी क्या प्रवृत्ति होगी ? आज विद्याधर की युवा अवस्था के बारे में हर किसी को जिज्ञासा बनी हुई है कि वे कैसे क्या करते थे ? इस संबंध में विद्याधर के अग्रज महावीर प्रसादजी ने जो बताया वही लिख रहा हूं-
उस जमाने में तो दूरदर्शन नहीं था किंतु कर्ण से ज्ञानार्जन का साधन अवश्य था। तब नया नया रेडियो का प्रचलन ह
चलते फिरते तीर्थ गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में भावों की विशुद्धिपूर्वक प्रणाम करता हूं..... हे गुरूवर! किशनगढ़ चातुर्मास की एक विशेष बात आपको याद होगी कि-जब विद्याधर को आपने तीर्थ यात्रा जाने की बात कही थी, किंतु उन्होंने मना कर दिया था। इस संबंध में श्रीमती कनक जैन (दिल्ली)हाल निवासी ज्ञानोदय, अजमेर ने बताया- जब हम किशनगढ़ गुरु महाराज के दर्शन करने के लिए आए तब यह बात पता चली, वही बात मैं आपको लिख रहा हूं-
सन 1967 में किशनगढ़ के कुछ सज्जनों ने ब्रह्मचारी विद्याधर को नि
चरित्र सौरभ के प्रवाही गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज! मेरे कोटि-कोटि नमन स्वीकारें... हे गुरुवर!आज मैं आपको वह दिन याद करा रहा हूं जब भोले- भाले ब्रह्मचारी विद्याधर जी की बात सुनकर श्रावक समूह के साथ आप भी अत्याधिक मुस्कुरा उठे थे। इस संबंध में मुनि निर्वेगसागर जी महाराज ने सन 1997 नेमावर चातुर्मास की स्वाध्याय कक्षा में आचार्य श्री के मुख से सुना संस्मरण लिख भेजा, वह मैं आप तक प्रेषित कर रहा हूं-
जब विद्याधर किशनगढ़ में गुरु महाराज ज्ञानसागर जी के पास आया और सवारी का त्याग कर दि
जैसे गुरु ज्ञानसागर जी महाराज अपने नियम के पक्केऔर अनुशासन के पक्के थे। ऐसे ही उनके शिष्य मुनि विद्यासागर जी भी बन गए थे। हमने कई बार मुनि विद्यासागर जी को आतेड़ की छतरियों में घंटो घंटो सामायिक करते सुना और देखा है।आतेड़ की छतरियां उस समय शहर से चार पांच किलो मीटर दूर जंगल में पहाड़ियों से घिरी हुई थी। एक दो बार गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज ने मेरे पतिदेव (पदमचंद जी पाटनी) को कहा-विद्यासागर को शीघ्र बुलाकर लाओ। तो विद्यासागर जी छतरियों की ओर से आते हुए मिलते थे उनको बोला- गुरु महाराज ने आपको बुलाने