आपमें सहज समता है,
आपमें अलौकिक क्षमता है,
लेकिन... दुनिया को दिखलाते नहीं,
उपयोग को शांत रखते हो।
विकल्पों को किञ्चित् भी स्थान न देकर,
तत्काल अतिक्रांत कर देते हो।
पञ्च पदों में तृतीय पद को आप धार चुके हो।
एक पद और आगे बढ़कर अर्हत् पद को पाने वाले हो।
आप पा लो शीघ्र मुक्ति का साम्राज्य,
यह भक्त गीत गायेगा सदा... सबसे पावन हैं मेरे गुरुराज !
“मेरे गुरुवर ध्यान दशा में, सिद्धप्रभु से लगते हैं।
देते हैं जब धर्मदेशना, अर्हत जिन से लगते हैं।।
दीक्षा दे तब आचारण गुरु, पठन काल में पाठक हैं।
आत्मसाधना में साधु सम, पञ्च पदों को वंदन है।।”