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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • हे संस्कारदाता…. गुरुदेव!

       (1 review)

     

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    संसार के संस्कार कहते हैं कि

    जो चाहते हो वह प्राप्त करके ही रहो,

    जबकि आपके संस्कार कहते हैं कि

    जो मिला है उसी में संतुष्ट होकर रहो।

    प्रसन्नता कुछ प्राप्त करने में नहीं,

    क्योंकि प्राप्त करने योग्य आखिर है ही क्या?

    प्रसन्नता कुछ त्याग करने में नहीं,

    क्योंकि जो मैं हूँ उसमें त्यागने योग्य आखिर है ही क्या?

    अत: मंगलोत्तम आपकी शरण में रह जाऊँ,

    ‘मैं' जो हूँ बस वही रह जाऊँ,

    जैसा मेरा स्वरूप है वही पा जाऊँ,

    बस इतनी कृपा आपकी पा जाऊँ।

     

    “श्री गुरुवर का दर्शन मंगल, पाप गलाता सुखदाता।

    गुरु समागम उत्तम माना, कल्पवृक्ष सा फलदाता।।

    गुरु गुण चिंतन सब दु:खहारक, अशरण जग में शरण कहा।

    मंगल उत्तम शरण हमारा, विद्यासागर नाम रहा।।”

     

    आर्यिका पूर्णमती माताजी


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