आपका उपयोग ज्ञानदर्शी है।
निजानंद सुख स्पर्शी है।
निज गृह में जाने का आदि है।
जिसने निज स्वरूप को पहचान लिया है।
पर को पर ही जान लिया है।
धन्य हो गुरूवर आप...
संयमित है आपके तीनों योग।
और पवित्र है आपका उपयोग।
“जिनके ज्ञान नयन में घुतिमय, दिव्यज्योति नित चमक रही।
जिनकी पावन हृदय वेदि पर, दिव्य आत्मा निवस रही।।
विशाल उन्नत ललाट तल पर, निजानंद प्रतिबिम्बित हैं।
ऐसे गुरु विद्यासागर जी, नर सुरगण से वंदित हैं।।''