मैं क्या हूँ, मैं नहीं जानता था।
मुझे कहाँ जाना है, मैं नहीं जानता था।
मुझे क्या करना है, मैं नहीं जानता था।
मुझे क्या होना है, मैं यह भी नहीं जानता था।
आप ही ने तो सारी जानकारी मुझे दी है।
“तत्व ज्ञान का मर्म ग्रंथ में, कहीं नहीं पाया जाता।
गुरु चरणों में विनय भाव से, ज्ञान मर्म वह पा जाता।।
ज्ञानाब्धि की विधा लहरे, अंतर कालुषता धोती।
सीप समर्पण में संयम का, पाऊँ मैं सच्चा मोती।।''