आपने अनंत कृपा कर इस देह में वास किया है।
इस उपकार के बदले में क्या दे सकता हूँ?
जिस देह में वास किया है,
भक्त मन कहता है कि...
उसी देह का नाश कर उपकार चुका दूँ।
फिर शेष रहेगा शाश्वत आत्मा,
जहाँ शाश्वत काल तक सिद्धालय में आप रहेंगे।
वहीं में भी स्थिर हो जाऊँगा।
आपने भक्त में वास कर जो उपकार किया है,
सच गुरुदेव! बहुत बड़ा उपहार दिया है।
“गुरु की अभेद रत्नत्रयमय, शुद्धभावना को वंदूँ।
स्वानुभूति रस चखने वाले, गुरु के चरणों को वंदूँ।।
मन मंदिर के परम देवता, भक्तों पर भी नज़र करो।
खाली झोली लेकर आए, कृपा करो उपहार भरो।।''