मैं गलतियाँ करता रहा,
आप क्षमा करते रहे।
मैं कूड़ा कचरा फैलाता रहा,
आप करूणा की धार बहाते रहे।
अब तो मुझे आपकी वह विशेष कृपा चाहिए,
जिससे गलती करने वाला मैला मन ही धुल जाए।
चेतन आत्मा की सारी भूल नश जाए।
“बाह्य जगत में रहकर भी गुरु, आत्म जगत में जीते हैं।
निराहार निज को लखकर भी, निजानुभव रस पीते हैं।।
आत्म गुफा में गहरे-गहरे, चिंतन में खो जाते हैं।
विद्यागुरु की ज्ञानधार में, निर्मलता हम पाते हैं।।''