आपके प्रति लोगों की श्रद्धा देखकर,
मुझे लगता है कि...
कानून ने जो परेशानियाँ हल की हैं,
उससे कई गुना परेशानियाँ आपके,
प्रवचनों ने हल की हैं।
दुर्जनों ने जो गंदगी फैलाई है,
उसे आपने अकेले ही,
सम्यक्रज्ञान की फूँक लगाकर दूर कर दी है।
आपका जीवन है आनन्दमय,
चित्चैतन्य चमत्कार, चिदानंदमय।
“ज्ञानगुरु पर्वत से पावन, विधाधारा फूट पड़ी।
विधामृत को जी भर पीने, सारी जनता उमड़ पड़ी।।
जिसने पान किया श्रद्धा से, अमर तत्व को जान लिया।
विधासागर गुरु को अपना, परमातम हीं मान लिया।।”