कहाँ तो आप...
निरंतर परमात्मा से बात करने वाले,
और कहाँ मैं..
संसारी जीवों से मुलाकात करने वाला,
फिर भी आपने मुझ पर करुणा बरसाई,
मुझे स्वयं से बात करने योग्य बनाया।
किया परम उपकार,
सोते से मुझे जगाकर,
धन्य हुआ में आपको पाकर।
“तीन लोक की संपद देकर, नहीं उपकार चुका सकते।
अविरल बहती इस गंगा को, कोई नहीं रुका सकता।।
कहने वालों कुछ भी कह दो, ये तो विद्यासागर हैं।
ज्ञानानंदी आतमवासी, गुणसागर रत्नाकर हैं।।”