बचपन से विद्या के धारक,
आप विद्याधर कहलाये।
बड़े हुए तो ज्ञानसागर में समा गये,
ग्रंथों के गहने धारण कर,
स्वयं निग्रंथ बन गये।
तब विद्या के सागर कहलाये।
आपको ज्ञानसागर कहूँ या विद्यासागर कहूँ,
या पंचम युग के अर्हत् गुण रत्नाकर कहूँ,
भक्ति में डूबा मन जो कहे वो कहूँ।
“न्याय और सिद्धांत शास्त्र पर, गुरुवर का अधिकार रहा।
गुरुवर का अध्यात्म विषय में, आतम एकाकार हुआ।।
संस्कृत प्राकृत आदिक भाषा, सहज कंठ से निःसृत है।
परम प्रतापी गुरुवर मानो, पंचम युग के अर्हत हैं।।”