आप जिसे कुछ नहीं देते हो,
उसे सब कुछ दे देते हो।
जिसे कुछ नहीं कहते हो,
उससे सब कुछ कह देते हो।
लोगों को लगता है, इन्हें कुछ नहीं देते पर,
क्या, वचनों से कहना ही सब कहना है?
बिन बोले भी तो कुछ कहा जा सकता है।
क्या, प्रत्यक्ष देने से ही दिया जा सकता है?
कुछ नहीं देना भी तो,
सब कुछ देने का प्रतीक हो जाता है।
"कुछ ना देते गुरु शिष्य को, अज्ञानी यह कहता हैं।
सारा जग जो ना दे पाता, गुरु वह मौलिक दाता हैं।।
दृश्य वस्तु को पाकर ही नित, अज्ञ शिष्य संतुष्ट रहे।
आत्मभूत उपहार प्राप्त कर, ज्ञानी शिष्य आभीष्ट वरे।”