यह कैसी मजबूरी है जो,
तरस रहे हैं तव दर्शन को।
केवल गुरु प्रतिबिम्बों से ही,
कर लेते संतुष्ट स्वयं को।
कैसे तुम्हें रिझाऊँ गुरुवर,
पास नहीं कुछ अर्पण को भी।
प्रथम दर्श में तुम्हें देखकर,
सर्वस्व दे चुके पास न कुछ भी।
ऐसा मंत्र मुझे दो गुरुवर,
शीघ्र आपका दर्शन पाऊँ,
विरह वेदना पूर्ण नशाऊँ।
“भावों से दर्शन मिलते पर, द्रव्य क्षेत्र से निकट नहीं।
शिष्यों को गुरु पास बुलालो, सर्व मिटेंगे संकट ही।।
ज्ञानसिंधु में डुबकी लगाकर, सारा मल धुल जायेगा।
विद्यासागर-विद्यासागर, शिष्य गुरु गुण गायेगा।।”