लेखनी लिखती है कि
पुरानी कहानियों में पढ़ते थे
राजा के प्राण तोते में बसते थे
लेकिन यह शिष्य गुरु की कहानी तो अदभुत है
इसमें विद्याधर तोते के प्राण
श्रीज्ञानसागरजी महाराज में बसते थे।
शिष्य तन से भले दूर रहे
पर मन से सदा पास रहता है
जब जब आता है गुरु का संस्मरण
झट भक्ति-यान में बैठ पहुँच जाता है
ज्ञान ही होता तब दिशासूचक यंत्र
श्रद्धा ही होती उसका पंथ,
किसी को दीखता नहीं
पर आकर कब मिल जाता है वह
विकत समस्या भी सुलझा लेता है वह
गुरु और शिष्य का मिलन है यह
तन का नहीं चेतन का गटबंधन है यह
यह सब शिष्य की भक्ति का कमाल है
बिना मांगे होता मालामाल है |
कोई जादूगर नहीं ये
जो हाथ सफाई का खेल दिखाये
कोई सोदागर नहीं ये
जो जड़ कमी का माल दिखाये
ये तो है ज्ञान सिन्धु के लाल
जिनकी कृपा पाने लगते है कई साल |