लेखनी लिखती है कि
माना माटी में घट होने की क्षमता है
पर कुंभकार न हो तो ?
माना बीज में पेड़ होने की क्षमता है
पर बागवान न हो तो ?
माना जल में मुक्ता होने की क्षमता है
पर स्वाति का काल न हो तो ?
माना दीप में रोशन होने की क्षमता है
पर ज्योति का संबंध न हो तो ?
सच गुरु ही कुंभकार, गुरु ही बागवान हैं
गुरु ही दिव्यज्योति, गुरु ही स्वाति का काल हैं।
अट्टालिका की ऊँचाई
दिखाई देती है सबको
लेकिन नींव की गहराई
दिखाई कहाँ देती सबको ?
परंतु महल की उन्नति
उसकी बुनियाद पर निर्धारित है,
शिष्य की प्रत्येक सफलता
गुरु-कृपा पर ही आधारित है।
सच्चे गुरु ऐसे ही होते हैं
कृत उपकार को प्रकट नहीं होने देते हैं
किंतु उसे उन्नत कर देते हैं
ऐसे गुरु यदि देखना है तो
श्रीज्ञानसागरजी गुरुवर को देखना
जिन्होंने अपने शिष्य को उन्नत किया अपने समान
इसीलिए तो कहलाए वे गुरु महान्।