लेखनी लिखती है कि-
गुरु का ज्ञान सूक्ष्मदर्शी यंत्र है
गुरु का हृदय करुणा का स्रोत है
जब शिष्य पर छा जाती हैं
बाधाओं की बर्फीली हवाएँ
तब अपनी कृपा की छतरी तान देते हैं,
जब शिष्य पर गिरते हैं
परेशानियों के पत्थर
तब अपनी स्नेहिल छत से सुरक्षित कर लेते हैं,
जब संकटों के शूल चुभते हैं
तब अपने आशीर्वाद के फूल बिछा देते हैं।
फिर भी गुरु कहते मैं कुछ करता नहीं
सच है उनकी दिव्य भावना का
आभामण्डल सब कर देता है
करुणा फुहार और वचनों की वर्षा से
तप्त हृदय भी शीतल हो जाता है।
इसीलिए सच्चा शिष्य
चाहे कितनी मुसीबतें मँडरायें
काल कवलित करने आ जाये
फिर भी वह परवाह नहीं करता;
क्योंकि विश्वास है उसे
तन विलग होने पर भी
चेतन गुरु का विरह नहीं होता
उन्हें तो बसाया है चेतना में
देह के पार विदेही आत्मा में
वह मुझमें है कभी अलग नहीं होता
वास्तव में वही अंतर्गुरु कहलाता।
वर्तमान में श्रीविद्यासागरजी गुरु के रूप में
विचर रहे जो धरा पर,
निश्चय गुरु का परिचय कराया जिन्होंने
ऐसे गुरु को नमन है दोनों हाथ जोड़कर।