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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • लेखनी लिखती है - 28

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    लेखनी लिखती है कि-

    गुरु स्पर्धा का भाव हटाते हैं 

    अंतर में श्रद्धा भाव जगाते हैं;

    क्योंकि स्पर्धा में द्वेष भाव होता है 

    श्रद्धा में गुणों का विकास होता है।

     

    गुरु सीधा प्रभु होने का

    दिखाते हैं रास्ता,

    उनके वचन ही जगाते हैं सुषुप्त आस्था

    क्योंकि उन्हें यह बोध है कि -

     

    बिना गुरु बने भी सच्चा शिष्य

    सीधा बन सकता है भगवान्,

    जैसे गौतम गणधर थे वीरप्रभु के सच्चे शिष्य

    पा गए वे सीधे केवलज्ञान,

    बिना आचार्य उपाध्याय बने

    साधु भी अर्हत् हो, पाते सिद्ध धाम।

    जो गुरु बनने की रखते इच्छा प्रबल

    वे खो देते परमात्मा बनने का बल

    विशेष होने की कामना लिए

    सामान्य भी न बन पाते ।

     

    इसीलिए कलम लिखती है-

    आनंद ही पाने का लक्ष्य है यदि तो

    गुरु बनने की आस छोड़ दो

    व्यर्थ के विकल्पों से संबंध तोड़ दो 

    हो जाओ सहज सरल विनीत

    पहचानो बस आत्मा, जानो मात्र आत्मा

     

    ‘णादा जो सो दु सो चेव'

    कहते हैं ‘श्रीकुंदकुंदाचार्य देव'

    इन्हीं के आदर्श पर चल रहे श्रीविद्यासागरजी गुरुवर

    तजकर सारे विकल्प बन जाओ शिष्य

    गुरुवर के चरणों में आकर।

     

    आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी


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