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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • लेखनी लिखती है - 91

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    लेखनी लिखती है कि -

    बंद कमरे में दम घुटने लगता है

    तो अचानक आकर कोई

    खिड़की के मजबूत कपाट खोलता है

    तब शीतल हवायें तरोताजा कर देतीं

    कक्ष को प्रकाश से भर देतीं

    तब आगंतुक लगता है मीत-सा

     

    ऐसा ही जीवन जब घिर जाता है पापोदय से

    सुख का द्वार तब बंद हो जाता है

    दुख से मन छटपटाने लगता है

    सारे तन के रिश्ते कुछ काम नहीं आते

    धन के अंबार से सुख कहाँ पाते?

    तभी धीरे से आकर कोई हृदय भवन में

    आनंद के बंद द्वार खोल देता है

    शांति की शीतल हवाओं से तब

    अपूर्व ताजगी वह पाता है।

     

    धीरे-धीरे अंतर्मन से

    जब वह निहारता है

    मानवाकृति के रूप में उसे

    गुरु दिखाई देता है,

    गुरु के दिव्य प्रकाश में ही

    शिष्य पाता है गुरु का दर्शन

    दीप के उजाले में ही

    दीप का होता है दर्शन।

     

    सच है गुरु-कृपा बिन

    गुरु का मिलन संभव नहीं,

    और गुरु मिलन बिन

    निज से निज का मिलन संभव नहीं।

     

    इसीलिए सर्वस्व सौंपकर

    शिष्य रहता मात्र दर्शक

    गुरु ही उसके पथ प्रदर्शक,

    वर्तमान में श्रीविद्यासिंधु गुरुवर को

    बना लेना है अपना निर्देशक।

     

    आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी


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