लेखनी लिखती है कि-
गुरु स्मरण ही शिष्य का जीवन है
सद्गुरु कहते हैं कि-
स्वभाव का विस्मरण ही मरण है
शिष्य कहता है गुरु आपमें तृप्ति है
गुरु कहते हैं स्वरूप में तृप्ति है
पर में तो तपन है
किसी अन्य की आवश्यकता नहीं तुझे
अपने आप में ही तू परिपूर्ण है।
जब तक पर का आलंबन लेता रहेगा
दीनहीन होता रहेगा
सहानुभूति औरों से चाहेगा
तो स्वानुभूति का आस्वादन कब होगा?
व्यवहार में मुक्तिपथ गुरु के अनुकरण से मिलता है
पर निश्चय से निजानुभवन से प्रगटता है
जब परम गुरु और प्रभु भी छूट जायेंगे
तब आत्मदेव के दर्शन होंगे।
इसीलिए पर की ओर तो दूर
पर्याय की ओर भी मत देख
क्षणभंगुर से दृष्टि हटा ले
अविनश्वर पर दृष्टि टिका ले।
यह मत सोचना कि
गुरु तेरी रक्षा करेगा
संकटों से तुझे बचायेगा,
स्वभाव का सच्चा ज्ञान ही तेरा रक्षक है
सम्यक् बोध ही तेरा शिक्षक है
तेरा आतम ही तेरे लिए कल्पवृक्ष है
जो चाहे वो देने में सक्षम है।
आनंद से झूमकर कहता है शिष्यात्मा
दुर्लभ है ऐसे महान् गुरु का मिलना
जब तक मोक्ष न हो
तब तक हे संत शिरोमणि गुरुवर !
आप ही मेरे पथ दर्शक रहना।