लेखनी लिखती है कि-
गुरु शिष्य का संबंध
कभी जटिल लगता है तो
कभी बहुत ही सरल
यह रिश्ता सब रिश्तों में अद्वितीय
वंदनीय और है पूजनीय
एक श्रेष्ठ गुरु पा, शिष्य होता कृतज्ञ
तो एक सशिष्य पा, गुरु होता धन्य
दोनों का संबंध है जग से अनूठा
प्रकृति का एक अजूबा।
जिसमें शिष्य गुरु के अनुशासन में बँध कर
शाश्वत मुक्ति पा लेता है
जितना-जितना होता गुरु का
उतना ही स्वयं का हो जाता है
गुरु भी जितना देता जाता
उतना ही उनका ज्ञान बढ़ता जाता है
गुरु सर्वश्रेष्ठ दाता होकर भी
प्रभु का प्रेम पात्र हो जाता है।
अद्भुत है यह नाता
जिसमें गुरु भी आनंद पाता
शिष्य भी सुख से भर जाता
जहाँ बंधन भी वंदन बन जाता है।
परमानंद का बंद कपाट खुल जाता है
इसीलिए छोड़ सारे काम
पहले गुरु का वरण करो
न बन सको विद्या के सागर तो
कम से कम विद्याधर का अनुसरण करो।