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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • लेखनी लिखती है - 73

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    लेखनी लिखती है कि-

    किसी से ऐसा मत कहना

    कि उसे यह कहना पड़े

    किसी से मत कहना,

    किसी के इतने अपने मत बनना

    कि उसे यह कहना पड़े

    अब तुम किसी के अपने मत बनना,

    समझाते हैं यह गुरु

     

    इनके संकेत समझता जो

    बेंत की आवश्यकता नहीं उसे

    गुरु की आज्ञा ही आदेश मानता जो

    अन्य उपदेश की आवश्यकता नहीं उसे,

    वही शिष्य समझदार है

    गुरु कहते हैं कि-

    समझदार दमदार का बेड़ा पार है।

     

    सद्गुरु शिष्य से कुछ चाहते नहीं

    चाहत ही मिट गई सब जिनकी

    वे भुक्ति क्या मुक्ति को भी चाहते नहीं

    ऐसे ही गुरु के सहारे

    शिष्य पा लेता सुख सारे।

    गुरु पढ़ाते एक पृष्ठ

    शिष्य पढ़ लेता सारा ग्रंथ

    गुरु-आज्ञा में मगन रहकर

    चलता वहीं से जो गुरु ने बतलाया पंथ।

     

    शिष्य के कथनी और करनी में भेद नहीं होता

    उसके मार्ग व मंजिल में मेल बना रहता

     

    ऐसा शिष्य यदि देखना हो तो

    दक्षिण के विद्याधर को देखना

    जिनकी श्वाँसों में ज्ञानसागर -ज्ञानसागर की ही

    सुनाई देगी धुन

    जरा एकतान होकर सुन।

     

     आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी


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