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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • लेखनी लिखती है-53

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    लेखनी लिखती है कि-

    गुरु सिखाते हैं निश्चय से

    तू ही तेरा गुरु है;

    क्योंकि तेरी रुचि ही तुझे सिखाती है

    तू ही तेरा शिष्य है;

    क्योंकि तेरी आत्मा अपने उपादान से सीखती है।

     

    शिष्य सदा शिष्य नहीं रहता

    गुरु सदा गुरु नहीं रहता

    यह तो पर्याय है बदलती रहती

    कभी पर्वत,नदी तो कभी नदी,पर्वत बन जाती।

     

    नश्वर को नहीं अविनश्वर को

    अध्रुव को नहीं ध्रुव को

    जो पहचानता है,

    पर्यायें बाहर में दिखती हैं भिन्न-भिन्न

    भीतर में सब समानता है,

    कोई तेरा दाता नहीं

    तू किसी से कुछ पता नहीं

    लेन-देन का भ्रम है बाहर में

    निश्चय से तू ही तेरा दृष्टा है,

    अपना ज्ञान कोई देता नहीं

    अन्य का ज्ञान कोई ले सकता नहीं

    समाया है तेरा ज्ञान तेरे ही भीतर

    निश्चय से तू ही तेरा ज्ञाता है।

     

    गुरु पहले पढ़ाते हैं फिर भूलना सिखाते हैं

    पहले बोलना फिर मौन होना सिखाते हैं

    पहले लेखनी से लिखना फिर लखना सिखाते हैं

    बाह्य गुरु की पहचान बता अंतर्गुरु तक ले जाते हैं।

     

    सचमुच, गुरु अद्भुत कराते हैं अध्ययन

    पहले श्रवण कराते फिर बना देते श्रमण

    पर्यायों से परे गुरु दिखा देते निजातम

    द्रव्य दृष्टि जो दिखा दें

    अपने आप से जो मिला दें

    ऐसे गुरु विद्यासागर को क्या कह दें?

    मन यही कहता है इन्हें अपना भगवान् कह दें।

     

    आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी


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