लेखनी लिखती है कि-
क्या यह तुम्हें ज्ञात है
गुरु, शिष्य का भविष्य जानता है
जैसे बालक के लिए माँ है दर्पण
माँ में ही बालक का अनागत होता है
वैसे ही गुरु शिष्य के लिए कैमरा नहीं
एक्स-रे मशीन भी नहीं
एम.आर.आई का यंत्र भी नहीं
बल्कि उससे भी भीतर
देह के भी अंदर
विदेह तत्त्व के भावों को भी
पकड़ लेते हैं गुरु।
शिष्य क्या सोचने वाला है
आगे क्या कर दिखाने वाला है
गुरु सब जान लेते शिष्य का मंतव्य,
कभी-कभी गुरु की दिव्य दूरदृष्टि
शिष्य समझ नहीं पाता,
बाद में जब होता रहस्योद्घाटन
तब वह अपनी अज्ञता पर पछताता।
जब सीता कर रही थी वन गमन
गुरु वशिष्ठ ने उतारने न दिये सुहागाभूषण
तब गुरु की दूरदृष्टि जनता न समझ पायी,
मगर सीता, हरण के समय वही गहने फेंकती गयी
श्रीराम द्वारा उन्हीं आभूषणों से वह मिल पायी।
वैसे गुरु कभी असत्य नहीं कहते हैं
यदि धर्म रक्षा के लिए कहें भी तो
उनके झूठ में भी सत्य के दर्शन होते हैं।
वास्तव में गुरु की हर वृत्ति अजूबी है
शिष्य जो खुद भी न जाने वह गुरु जानते हैं
कहा था अजमेर के लोगों ने
श्रीज्ञानसिंधु गुरुराज से,
दीक्षा मत दो छोटे से विद्याधर को
तब गुरु ने कहा था मैंने इसे परख लिया है
इसके स्वर्णिम भविष्य को पढ़ लिया है।