लेखनी लिखती है कि-
लाख दुनिया समझाये
पर गुरु का समझाना
अलग ही बात है,
लाख कोई अपनाये
पर गुरु का अपनाना
अलग ही बात है,
लाख जुगनू टिमटिमाये
पर सूर्य का उगना
अलग ही बात है;
क्योंकि गुरु हैं धड़कन
नाड़ी की फड़कन
चाहे कितना ही काम करें अन्य अंग
पर हृदय की अपनी अलग ही अस्मिता है,
चाहे कितने ही काम आये अन्यजन
पर गुरु की एक अलग ही विधा है,
गुरु-कृपा की रसधार के आगे
अमृत रसायन से भरा घट भी लगता रीता है।
गुरु की दृष्टि है निराली
जिस पर पड़ जाये
उसे लगता है आ गई दीवाली,
समस्त दुविधा को हरने वाली
अंध नयन में भी
मानो नव ज्योत भरने वाली।
गुरु-महिमा को हजारों जिह्वा भी गाएँ
पर महिमा शेष ही रह जाती,
ऐसे गुरुवर श्रीविद्यासागरजी के
गुण लिखते-लिखते लेखनी भी थम जाती।