लेखनी लिखती है कि-
पिता चाहता है कि यह आज्ञाकारी ही बना रहे
माँ चाहती है कि यह मेरा बेटा ही बना रहे
बहन चाहती है कि यह मेरा भ्राता ही बना रहे
लेकिन गुरु चाहते हैं
यह स्वयं को इतना काबिल करे
कि भगवत्ता को हासिल करे।
इसीलिए गुरु बन जाते अधिवक्ता
जो अनंतकाल से सताते हैं
ऐसे कर्मरूपी प्रतिद्वन्द्वी से भी जिताते है
यह मत सोचो कि यह तो गुरु का फर्ज है
सच्चा शिष्य कहता -
मुझ पर गुरु का यह बहुत बड़ा कर्ज है
जिसका सामान्य ब्याज भी चुका नहीं सकता मैं!
फिर मूल चुकाने की तो बात कैसे कर सकता मैं !!
सच है, गुरु के गुण अगम हैं
जिनका स्थिर मन देख
हिमगिरि भी पिघल जाता है
जिनका गंभीर चारित्र देख
प्रशांत महासागर का उफान भी रुक जाता है
जिनकी क्षमा भाव की शीतलता देख
अनल उगलता मरुथल भी ठंडा पड़ जाता है
ऐसे ही संतों में श्रेष्ठ श्रीविद्यासागरजी यतिराज
अनेक गुणों के धाम हैं
उन्हें त्रियोग से मेरा प्रणाम है।