आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी मुनी महाराज -अभिषेक जैन
आचार्य भगवन के चरणों में सत-सत नमोस्तु...नमोस्तु...नमोस्तु
पत्थरों में भाव भर दे
शुन्यता को पूर्ण कर दे
पतित को पावन बना दे
सदज्ञान की गंगा बहा दे
पतित को भी पूज्य कर दे
भय-कष्ट सारे दूर कर दे
भक्त को स्व में मिलाले
परमात्मा से जो मिलादे
निजात्मा के स्वरूप का
जो स्वयं दर्शन करा दे
संसार के सारे मनोरथ
माथा स्वयं अपना झुकाते
राह के पत्थरों को जो
भगवान में तब्दील कर दे
साधरण मूर्तियों को प्राण
प्रतिष्ठा से सम्पूर्ण कर दे
तो मनुज जिसमें स्वयं
परमात्मा का अंश है
आप की प्रभु भक्ति से
आराधना की शक्ति से
निज आत्मा में लीन होले
स्व-स्वरूप में तल्लीन होले
कर्म मल से रहित हौले
पाप सारे स्वयं धो ले
सब मनोरथ पूर्ण होगें
प्रभु-भक्ति से सम्पूर्ण होगें
संसार की फिर सारी खुशियाँ-
निधियां स्वयं चलकर आयेंगी
आपकी आराधना में
स्वयं ही मुस्कायेँगी
है प्रभु बस इसलिये
आपका मैं दास हूँ
आपके पद-पन्कजों में
नित करुँ अरदास मैं
है प्रभु तुझ-सा बना लो
चरणों मैं मुझको जगह दो ।।
सादर नमन-वन्दन-नमोस्तु
-अभिषेक जैन स-परिवार