आचार्य श्री जी
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सन्त शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
के चरण कमलों में कोटि-कोटि नमन-वन्दन
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर
-अभिषेक जैन सा-परिवार
मैनें
ईश्वर को
नहीं देखा
न ही उन्हें
जाना,
पहचाना, या
शायद माना
फिर भी कुछ
तो है, जो हम
सबको जोड़े हुए
है, प्रेम-स्नेह के
धागे बोये हुए है
तभी शायद
ये जीवन चल रहा
है, भले ही हर पल
ये मन हमें छल रहा है
फिर भी गुरुवर आपमें
प्रभु की छबी साफ दिखती है
शायद ईश्वर भी
आप का ही सर्वोत्कृष्ट
रूप हो, आप के ज्ञान
आपकी त्याग-तपस्या
का सर्वोतम फल हो
क्योंकि यदि आप नहीं
तो जग में फिर कोई नहीं
अत: आपकी
ही शुभ शरण का
अनुसरण मेरे जीवन
का लक्ष्य है, निश्चित यहीं
मोक्ष का मार्ग है, आप की भक्ति
ही शाश्वत सुखों का द्वार है,
संसार जाल से मुक्ति
का सुंदर-सरल उपाय है,
इसीलिये प्रभु
मैं आपके चरण
कमलों का दास हूँ,
आपकी सेवा कर सकूँ,
कुछ आपसा बन सकूँ,
नियम-सयंम पथ अपनाऊ
गुरुवर आपका ही रूप ध्यायूँ
यहीं मुझ सेवक की आश है,
आप पर पूर्ण विश्वास है।।
सविनय नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर
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अभिषेक जैन स-परिवार