108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनि महाराज के चरण कमलों में मेरा सत-सत नमन-वंदन
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर -अभिषेक जैन सा-परिवार
उत्कृष्ट चर्या के धनी
तप-साधना में लीन हो
अंतरात्मा में विराजित
आत्मध्यान में तल्लीन हो
लू तुझें विचलित न करती
कपकपाती शीत भी हार जाती
धूप-गर्मी-बाधाएं सभी पानी भरती
मोक्षसुख की राह पर अडिग प्रभु आपहों
कर्तव्य पथ से कभी विचलित न गुरुवर
आश्चर्य क्या फिर आपमें स्व-चमत्कार हो
प्रकृति भी श्रेष्ठ साधक की रहती गुलाम है
सृष्टि की सारी आलौकिकता आपमें अभिराम है
किन्तु निज आत्मा के अतिरिक्त आपका न ध्यान है
संसार की सारी ही निधियाँ चरण कमलों की दास है
स्व-प्रशंसा की लघुता आप में अब शेष न
मुस्कुरातें आप गुरुवर श्रावकों की अल्पज्ञता
धन्य-धन्य ये जीवन मेरा, जो आपसा है गुरु मिला
दर्श मात्र से ही ये मेरा मलिन पापी मन दर्पण खिला
आपकी प्रभु भक्ति में मेरे ये सुबहों-शाम है, आठोंयाम है
आपके चरणों में गुरुवर, सत-सत मेरा वंदन-प्रणाम है।।
सादर नमोस्तुते नमोस्तुते नमोस्तुते
अभिषेक जैन सा-परिवार