108 आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चरण कमलों में सत-सत नमन वंदन....
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर -अभिषेक जैन सा-परिवार
अल्पज्ञता क्यों है सताती
चाह किसकी सदा तड़पाती
पा चुके जो भी ये मानव, क्या
सभी संतुष्ट है, या खुशी में चूर
होकर हर दुखों से दूर है, यदि
नहीं ऐसा तो फिर इस जगत में
सत्य क्या है, परम सुख प्राप्ती का
सहज-सुगम मार्ग क्या है, क्यों सदा
कुछ पाने की चाहत हम सदा मन में
पिरोये, गर मिलें तो थोड़ी खुशियाँ
नहीं तो दिन-रात रोयें, कब तलक ये
सिलसिला बस यूहीं चलता रहेगा, छल
शाश्वत सुखों के बिना जग में, मन यूहीं
पागल रहेगा, कौन सा है सुख वह सच्चा
जहाँ दुख का लेश न, तनिक भी संकलेश न
मोक्ष सुख के अलावा, इस जगत में सब छालाबा
यहीं प्रभु बस आपसे, सीख पाया हूँ अभी
भूल सारी जग की नश्वर निधियाँ, पूर्ण सुख
पाने की चाह लाया हूँ अभी, पता है मुझको
प्रभु, अल्पज्ञता का भान है, पर प्रभु आप पर
अर्पित मेरे अब प्राण है, आपकी ही शुभ शरण
मार्ग-दर्शन करती मेरा, मोक्ष मार्गी बन सकूँ
बस यहीँ है भावना, चाहें कितने जन्म ले लूँ
बस आपकी ही शरण है, आपके चरणों में
प्रभुवर मेरा जीवन-मरण है।।
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर
अभिषेक जैन सा-परिवार